धान के प्रमुख रोग एवं कीट तथा उसका  प्रबंधन के सही ऊपाय जानिए और कौन सी दवाई छिड़कना सही रहेगा नाम जानें Best of@2023

धान के प्रमुख रोग एवं कीट तथा उसका  प्रबंधन 

A. धान के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन के उपाय (Major Diseases of Rice and their Management)

1.धान झुलसा रोग (Blast of Rice) 

यह रोग की धीरे-धीरे बढ़कर पकते समय तक देखे जा सकते छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं, जो पत्तियों पर इस रोग के प्रारंभिक धब्बे बुवाई के 15 दिन बाद से धान प्रारम्भिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैगनी रंग के आँख के समान बीच में चौड़े व किनारों पर सँकरे हो जाते हैं। इन धब्बों के बीच का रंग हल्के भूरे रंग का होता है। तने की गठानों पर भी इस रोग का आक्रमण होता है, जिससे वे काली हो जाती हैं तथा पौधे इन ग्रसित गठानों से टूट जाते हैं।

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रोग के प्रकोप से धान की बाली पर सड़न पैदा हो जाती है तथा उपज प्रभावित होती है, क्योंकि बाली टूटकर गिर जाती है। यह रोग पाइरीकुलेरिया ग्रीसिया फफूँद द्वारा होता है।

Blast of rice

प्रबन्धन (Control of Blast of Rice)

रोग के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही ट्राईफ्लॉक्सी स्ट्रोबिन 25 प्रतिशत + टेवूकोनाजोल 50 प्रतिशत डब्लू जी. एजोक्सीस्ट्रोबीन 1 ग्राम/लीटर ।

रोगरोधी जाति – आई.आर.-64 का चयन करें।

समय पर बुवाई और सन्तुलित उर्वरकों का उपयोग इस रोग को सीमित करने में मदद करते हैं।

2. जीवाणुजनित झुलसा रोग (Bacterial Leaf Blight of Rice) 

इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पनीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुये पीला सा होने लगता है। इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है।

रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। यह रोग जेन्थोमोनास ओराइजी जीवाणु द्वारा होता है।

dhan me jivanu jhulsa rog

प्रबन्धन (Control of Bacterial Leaf Blight of Rice)

सन्तुलित उर्वरकों का उपयोग करना चाहिये। नत्रजनयुक्त खादों का उपयोग निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं करना चाहिये। रोग होने की दशा में पोटाश (20 kg) प्रती एकड डालना चाहिये।

रोगरोधी अथवा रोग सहनशील किस्म जैसे- उन्नत सावाँ मासुरी का चुनाव करना चाहिये। कोई रासायनिक उपचार इस बीमारी के लिये प्रभावकारी नहीं है।

3. पर्णच्छद विगलन रोग (Sheath Rot of Rice) 

इस रोग के लक्षण धान की गभोट वाली अवस्था में दिखाई देते हैं। गभोट के निचले हिस्से पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनका कोई विशेष आकार नहीं होता है। ये धब्बे एक भूरे रंग की परिधि से घिरे रहते हैं। इस रोग की वजह से बाली गभोट के बाहर नहीं आ पाती है।

बाली का कुछ भाग ही बाहर आ पाता है, उसमें दाने नहीं भरते व ग्रसित बाल पकने तक सीधी खड़ी रहती है। रोग की वजह से बदरा बढ़ जाता है और उत्पादन बहुत कम हो जाता है। यह रोग सारोक्लेडियम ओराइजी फफूँद द्वारा होता है।

Sheath rot of rice

प्रबन्धन (Control of Sheath Rot Disease of Rice)

धान बीज को बुवाई से पूर्व 17 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोने से हल्के तथा खराब बीज (बदरा) ऊपर आ जाते हैं एवं स्वस्थ पुष्ट बीज नीचे बैठ जाते हैं। चयनित बीज का बीजोपचार कवकनाशी कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत + मेन्कोजेब 63 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करने पर इस रोग का प्रसार कम करने में मदद मिलती हैं।

गभोट अवस्था के समय कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत + मेन्कोजेब 63 प्रतिशत (1 ग्राम/लीटर) हेक्साकोनाजोल (1 मि.ली./ली.) का छिड़काव करना लाभकारी है। रोग सहनशील किस्म दन्तेश्वरी का चयन करें।

4. भूरा धब्बा रोग (Brown Leaf Spot of Rice)

इस रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो गोल या अण्डाकार होते हैं व पत्तियों की सतह पर समान रूप से फैले रहते हैं। ये धब्बे प्रायः एक पीले रंग के वृत्त से घिरे रहते हैं, जो इस रोग खास पहचान है। दानों के ऊपर भी इस रोग की वजह से बहुत छोटे-छोटे गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे बनते
हैं, जो इस रोग को बीजजनित बनाते हैं।

इस रोग की वजह से सर्वाधिक नुकसान बीज के अंकुरण के समय सड़ने की वजह से होता है। की यह रोग हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी फफूँद द्वारा होता है।

Dhan ke bhura dhabba rog

प्रबन्धन (Control of Brown Leaf Spot of Rice)

नमक के घोल द्वारा पुष्ट बीज का चयन व उसके बाद कवकनाशी से बीजोपचार करें । मेन्कोजेब 63 प्रतिशत + कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत डी.एस. 1 ग्राम/लीटर का छिड़काव लाभप्रद है। रोग सहनशील जातियों जैसे- इंदिरा सुगंधित धान-1 का चुनाव करना चाहिये। ध्यान रखें कि पानी की कमी न होने पाये।

5. धान का पर्णच्छद झुलसा रोग (Sheath Blight of Rice)

यह रोग धान में कंसे निकलने की अवस्था से गभोट की अवस्था तक देखा जा सकता है। रोग प्रकोपित खेत में पानी की सतह से आरम्भ होकर पर्णच्छद पर ऊपर की ओर फैलता है और अंततः पौधा रोगग्रस्त होकर झुलस जाता है। रोग लक्षण पर्णच्छद व पत्तियों पर दिखाई देते हैं। पर्णच्छद पर 2-3 से.मी. लम्चे, 0.5 से.मी. चौड़े भूरे से बदरंगे धब्बे बनते हैं। प्रारंभ में धब्बे का रंग हरा-मटमैला या ताम्र रंग का होता है।

बाद में बीच का भाग मटमैला हो जाता है, जबकि धब्बों के किनारे भूरे रंग के होते हैं। इस रोग को धान स्क्लेरोशियल ब्लाइट या बेन्डेड ब्लाइट के नाम से भी जाना जाता है। रोग उग्र अवस्था में तने के ऊपर की ओर फैल जाता है व कभी-कभी धब्बों पर सफेद रंग का कवकजाल व राई के दाने के समान कठ कवक (स्क्लेरोशियम) दिखाई देता है। यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनी फफूँद द्वारा होता है।

Sheath blight of rice

प्रबन्धन  (control of sheath Blight of rice)

रोगी फसल अवशेषों को जलाकर नष्ट कर दें। पौधों की रोपाई बहुत पास-पास न करें। खड़ी फसल में रोग-प्रकोप होने पर हेक्साकोनाजोल कवकनाशी (1 मि.ली./ली.) या थायोपलूजामाइड का छिड़काव 10-12 दिन के अन्तर से करें।

6. खैरा रोग (Khaira Disease of Rice)

यह रोग मिट्टी में जस्ते की कमी से होता है। प्रभावित फसल की निचली पत्तियाँ पीली पड़ना शुरू हो जाती हैं और बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के छिटकवाँ धब्बे उभरने लगते हैं। कल्ले कम निकलते हैं तथा पौधों की वृद्धि रुक जाती है।

Khaira bimari dhan ka

प्रबन्धन (Control of khaira Disease of Rice)

इसके लिये 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई या बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय डालना चाहिये।
रोग लगने के बाद इसकी रोकथाम के लिये 5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट तथा 2.5 कि.ग्रा. चूना 600-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

B. धान का प्रमुख कीट एवं  उसका प्रबंधन के ऊपाय (Major Insect Pest of Rice and Their Management) 

धान एक प्रमुख फसल के रूप में प्रदेश के बहुत बड़े हिस्से में लगाया जाता है। मिट्टी, जलवायु संबंधी अनुकुलता के साथ-साथ विपणन व्यवस्था की वजह से खरीफ एवं रबी के मौसम में इसकी खेती हो रही है बढ़ाने वाली अनेकों तकनीकों का विकास किया जा रहा है एवं किसानों में नवीन रूझान बढ़ा है। अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की पोषण संबंधी आवश्यकता उर्वरकों का उपयोग बढ़ा है।

उचित फसल प्रबंधन तकनीक को नहीं अपनाये जाने की वजह से फसल कीट व्याधियों के लिए सुग्राही हो जाता है। विपरीत परिस्थितियों में 21-51 प्रतिशत तक पैदावार में क्षति का आकलन किया गया है, इसमें तना छेदक से 30 प्रतिशत, मांहू से 20 प्रतिशत, गंगई से 15 प्रतिशत, पत्ती मोड़क से 10 प्रतिशत एवं अन्य से 25 प्रतिशत तक क्षति का आकलन किया गया है।

फसल की अवस्थावार कीट प्रकोप का विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ है कि रोपाई में 2 माह तक का समय अत्यंत संवेदनशील होता है इसके बाद की अवस्था में कीट प्रकोप होने पर अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है। धान फसल तकनीकों अधिक होने की पैदावार को अपनाने के की वजह से प्रति रासायनिक कीट प्रकोप की तीव्रता बढ़ाने में जलवायु संबंधी कारकों के अलावा फसल प्रबंधन की गलत तकनीक का योगदान होता है।

धान के बाद धान या गेंहूँ या मक्का का फसल लिये जाने वाले क्षेत्रों में कीट प्रकोप की तीव्रता देखी गयी है। इसी प्रकार से अलग-अलग परिस्थियों में कीट व्याधियों की समस्याएं भिन्न-भिन्न होती है। उच्चहन भूमि में लिए जाने वाले धान फसल में सूत्रकृमि, दीमक, कटुआ एवं गंधी बग की समस्या विशेष रूप में देखने में आती है।

सिंचित क्षेत्र में लिए जाने वाले धान फसल में तना छेदक, मांहू पत्ती मोड़क की समस्या व्यापक रूप से देखने में आती है। निचली भूमि में जहां दीर्घ अवधि वाली किस्में लगायी जाती है, वहां गंगई, तना छेदक, मांहू, चितरी, बंकी एवं हिस्पा कीट का ज्यादातर प्रकोप होता है। हानिकारक कीटों की पहचान तवम यवस्क धान फसल की विभिन्न अवस्थाओं में गंगई, तनाछेदक, माहू, चितरी, बंकी एवं कटुआ कीटों का प्रकोप होता है।

1. गंगई (Gall Midge Insect of Rice)

इस कीट की इल्ली (मैंगट) अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, पूर्ण विकसित मैंगट हल्के  गुलाबी रंग की व लगभग 3-4 मि.मी. लम्बी होती है। यह कीट पौधे की प्ररोह कलिका को खाती हैं जिससे तनें के स्थान पर पोंगा बनता है जिसमें बालियां नहीं आती। इसे नष्ट करने हेतु फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.
सी. 1000-1500 मि.ली. / हेक्टेयर, फिप्रोनिल 0.03 प्रतिशत जी.आर. 16600-25000 ग्राम / हेक्टेयर डालें।

Dhan ke gangai
Photo Credit- Rice expert

2. तनाछेदक (Stem Borer of Rice)

इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती है, पूर्ण विकसित इल्ली हल्के पीले रंग की व लगभग 20 मि.मी. लंबी होती है। यह कीट फसल के कंसा एवं गभोट अवस्था में तनें के अंदर घुसकर खाती है जिससे कमशः सूखा तना व सूखी बालियां बनती हैं जो खींचने पर आसानी से बाहर निकल जाती है।

इसे नष्ट करने हेतु फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1000-1500 मि.ली./हेक्टेयर, फलुबेंडामाइड 20 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 125 ग्राम / हेक्टेयर, क्लोरट्रानिलीप्रोल 5.05 प्रतिशत एस.सी. +थायोमिथेक्सॉम 01 प्रतिशत जी.आर. या कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस.पी. 1 किलो/हेक्टेयर का उपयोग करें।

Dhan ke tana chhedak
Photo Credit- Rice expert

3. भूरा माहू एवं सफेद माहू -Brown Leaf Hopper (BPH) and Green Leaf Hopper (GLH)

धान फसल की थरहा गभोट एवं बाली में क्रमशः सफेद, भूरा एवं हरा माहू कीट का प्रकोप होता है। सफेद एवं भूरा माहू पौधे के तना से एवं हरा मांहू पत्तियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करती हैं। कीट प्रकोप की तीव्रता होनें पर फसल झुलसी हुई सी प्रतीत होती है।

इसे नष्ट करने मुख्य हेतु ब्युपरोफेजीन 25 प्रतिशत एस.सी. 800 मि.ली./हेक्टेयर का प्रयोग करें। इसके अलावा आवश्यकतानुसार पाइमट्रोजिन 50 डब्ल्यू.जी. 300 ग्राम या ट्राईपलूमिथोपाइरम 10 प्रतिशत एस.सी. 235 मि.ली./हे. का छिड़काव करें।

Dhan men bhura mahu

4. पत्ती मोडक (Leaf folder Insect of Rice)

इसे चितरी कीट कहा जाता है, इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती है, पूर्ण विकसित इल्ली हरे रंग की व 20-25 मि.मी. लंबी होती है। यह कीट पत्तियों के दोनों किनारों को आपस में जोड़कर पत्तियों का हरा पदार्थ खुरचकर खाती है जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां बन जाती हैं। इसे नष्ट करने हेतु इण्डोक्साकार्ब 15.80 प्रतिशत ई.सी. 200 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या कार्टाप हाइड्रोक्लोराईड 50 डब्ल्यू.पी 1 किलो प्रति हेक्टेयर डालें।

Dhan men patti modak

5. केस वर्म (Case worm insect of Rice)

इसे बंकी कहा जाता है इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुॅचाती हैं, पूर्ण विकसित इल्ली हरे रंग की व 15-20 मि.मी. लंबी होती है। यह कीट पत्तियों को ऊपर से काटकर उसका खोल जैसा बना लेती है, व इसके अंदर रहते हुए पत्तियों पर चढ़कर हरा पदार्थ खुरचकर खाती है, जिससे पत्तियॉ ऊपर से कटी हुई व सफेद धारियां युक्त दिखाई देती हैं। इसके नियंत्रण के लिए फेन्थोएट 50 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली. प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।

Case worm insect of rice

धान के प्रमुख रोग एवं कीट

6. कटुआ (🐛 Insect of Rice)

इसे सैनिक कीट या फौजी कीट भी कहा जाता है, इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। पूर्ण विकसित इल्ली गहरे भूरे रंग की व 30-40 मि.मी. लंबी होती है तथा ये समूह में चलते हैं। यह कीट थरहा अवस्था में पत्तियों को व बाली अवस्था में बालियों को काटकर खेत में गिरा देते हैं। इसके नियंत्रण हेतु एसीफेट 50 डब्ल्यू.पी. 1.2 किलो या फिपरोनिल 5 एस.पी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

धान के प्रमुख रोग एवं कीट
फोटो क्रेडिट – Rice Expert

7. गंधी बग (Gandhi Bug insect of Rice)

इस कीट की शिशु एवं प्रौढ़ अवस्थाएं फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, पूर्ण विकसित बग मच्छर की आकृति का हरापन लिए भूरा रंग का व आकार में लगभग 25 मि.मी. लंबा होता हैं। यह कीट पत्तियों एवं बालियों से रस चूस लेती है इससे दानें पोंचे रह जाते हैं। इसे नष्ट करने हेतु इमिडाक्लोपिरिड 6 प्रतिशत+लैम्डा साइहेलोथ्रिन 4 प्रतिशत एस.एल. 300 मि.ली./हे. का उपयोग करें।

Dhan ke gandhi kida

कीट प्रबंधन की प्रचलित तकनीक (Traditional techniques of Rice Insect Pest Control)

किसान जब कीट नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों पर ही निर्भर रहता है तथा व्यापक रूप से संहार करने वाले तीव्र कीटनाशकों का उपयोग करता है तब रासायनिक कीटनाशक निष्प्रभावी होनें लगता है व कीटव्याची की समस्या प्रचण्ड रूप धारण कर लेती है। रासायनिक कीटनाशकों के निष्प्रभावी होनें की प्रक्रिया के प्रमुख घटकों में कीटनाशकों का स्तरहीन होना, सही उपयोग विधि का न अपनाया जाना एवं निर्धारित मात्रा एवं सांर्द्रता संबंधी निर्देशों का पालन नहीं करना प्रमुख है।

जब किसी रासायनिक कीटनाशक का उपयोग पीड़क (हानिकारक) कीटों के संहार के लिए किया जाता है तब उस क्षेत्र में हानिकारक कीटों की संख्या कम होनें के अतिरिक्त दो प्रमुख घटनाएं होती है। पहली घटना में पीड़क कीटों की कुछ संख्या दवा उपयोग के बाद भी मरनें से बच जाती है, इसी दवा को बचे हुए कीटों की संततियों पर उपयोग किये जाने पर पहले की तुलना में ज्यादा संख्या में कीट बचे रहेंगे तथा पीढ़ी दर पीढ़ी यह संख्या बढती जायेगी जिन्हें कीटनाशी प्रतिरोधी नस्ले कहेंगे।

अंततः वह कीटनाशी निष्प्रभावी होता जायेगा। दूसरी घटना में व्यापक प्रभावी कीटनाशक के उपयोग से पीड़क कीटों के साथ-साथ परजीवी एवं परभक्षी कीटों तथा कीटाहारी जीवों का भी बड़ी संख्या में संहार हो जाता है।

फसल पर पीड़क कीटों की अनुपस्थिति से भक्षक कीटों का पलायन हो जाना इसके बाद बची हुई पीड़क कीटों की संतती प्राकृतिक शत्रुओं की अनुपस्थिति में निर्बाध रूप से बढ़ती है इसे अनियंत्रित प्रजनन कहते हैं। पीड़क कीटों में अनियंत्रित प्रजनन के कारणों में सबसे पहला कारण होता है।

कीटों के जीवनकाल का छोटा होना, एक फसल मौसम में इनकी कई पीढ़ियां फसलों पर पनपती है, दूसरा कारण है विपरीत परिस्थितियों से लड़ने लायक सक्षम शरीर वाली संततियों की उत्पति । कीटनाशकों के उपयोग से मादा कीटों के प्रजनन दर में वृद्धि हो जाती है साथ ही पीड़क कीटों की न्यूनतम संख्या से भोजन हेतु प्रतिस्पर्धा कम रहती है व प्राकृतिक शत्रुओं की अनुपस्थिति भी बढ़वार हेतु अनुकूल परिस्थितियां बनाती है।

कीटनाशकों से उपचारित पौधों पर अवशेष के रूप में बचे कीटनाशकों के मेटाबोलाइट कई बार हानिकारक कीटों हेतु पौष्टिक भोजन साबित होते हैं व कीटों की तीव्र वृद्धि में सहायक होते है। कीटनाशक छिड़काव के उपरांत वर्षा हो जाने पर कीटनाशक की सांद्रता कम हो जाने से उसकी मारक क्षमता कम हो जाती है व मादा कीट प्रजनन की गति बढ़ा देती है।

पौधों की सघन बनावट, अधिक मात्रा में नत्रजन उर्वरक उपयोग, लगातार सिंचाई व कीट के जीवनकाल में अनुकूल तापमान व नमी का मिल जाना भी अनियंत्रित प्रजनन में सहायक होता है। व्यापक प्रभावी (ब्रॉड स्पेक्ट्रम) कीटनाशक का किसी क्षेत्र में लगातार उपयोग किये जाने की परिणति होती है उस कीटनाशक का निष्प्रभावी हो जाना, पीड़क कीटों के नियंत्रण के अभाव में उत्पादन में क्षति खेती की लागत में वृद्धि व फसलों में विष अवशेष जैसी विसंगतियां उत्पन्न होंगी ।

किसानों नें रासायनिक कीटनाशक दवाओं का प्रभाव बढ़ाने के लिए दो या दो से अधिक दवा को एक साथ मिलाकर छिड़कना शुरू कर दिया है इसके घातक परिणाम होगें । मिश्रित दवाएं कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के लिए हानिकारक होता है, विभिन्न विधियों को मिश्रित करना लाभदायक है जैसे एक उपयुक्त रासायनिक कीटनाशक के साथ में हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रु फिरोमोन प्रपंच, प्रतिरोधक / सहनशील किस्म तथ सस्य विज्ञानी क्रियाओं को मिश्रित करना सुरक्षित, सस्ता एवं टिकाऊ रास्ता है ।

अनियंत्रित कीटनाशक उपयोग से ऊपजी समस्या के निदान के लिए समन्वित कीट प्रबंधन अपनाना चाहिए (Effect and Control of Over Dose or Over Use of Chemical Pesticide)

1. फसल चक्र एवं किस्म चयन (Crop rotation and Selection of Varieties of Rice)

धान के बाद चना की खेती उत्तम है, उच्चहन भूमि हेतु दंतेश्वरी (गंगई निरोधिता एवं भूरा मांहो सहनशीलता), मध्यम भूमि हेतु महामाया (गंगई निरोधिता एवं तनाछेदक सहनशीलता), निचली भूमि हेतु कर्मा मासुरी (गंगई निरोधिता एवं सफेद व भूरा माहो सहनशीलता) या सुगंधित धान में इंदिरा सुगंधित धान-1 (गंगई निरोधिता एवं तनाछेदक सहनशीलता) का चुनाव उत्तम है। तनाछेदक कीट के प्रबंधन हेतु प्रलोभक फसल किस्म (पूसा बासमती-1) की पंक्तियां 9:1 में लगाएं।

2. फसल प्रबंधन के ऊपाय (Management Technique of Crops)

1.  कतार बोनी 15 जून तक रोपाई 15 जुलाई तक व लेही पद्धति से बोयी जाने वाली अंकुरित बीजों को 0.2 प्रतिशत क्लोरपायरीफॉस घोल से उपचारित करें।

2. पौधों के बीच का अंतरण 20 X 15 से.मी.  उत्तम है प्रत्येक तीन मीटर के पश्चात् 30 से.मी. निरीक्षण पथ हेतु छोड़ दें। भूमि के प्रकार एवं किस्मों की अवधि के अनुसार नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश उर्वरकों को 3:2:1 में देवें। खेत के अंदर एवं आसपास उग रहे खरपतवारों का उन्मूलन आवश्यक है।

3. निगरानी (Supervision)–  फसल में हानिकारक कीटों की उपस्थिति एवं संख्या पर निगरानी हेतु प्रकाश प्रपंच सायं 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक चालू रखें या फिरोमोन ट्रेप लगायें तथा हस्तजाल चलाकर हानिकारक व लाभदायक कीटों की संख्या पर नजर रखें। हानिकारक कीटों एवं मित्र कीटों की संख्या 1:2 में होना आदर्श स्थिति है। कीट प्रातः एवं संध्या काल में सक्रिय रहते हैं अतः यही निगरानी हेतु उपयुक्त समय है। निगरानी करने के साथ-साथ अण्ड समूहों व इल्लियों का एकत्र कर लेवें।

4. मित्र जीव संवर्धन (Beneficial Insect Multiplication)-  कीटाहारी जीवों की सक्रियता बढ़ाने के लिए फूलदार पौधे लगाएं। मुख्य फसल में पीड़क कीटों के अभाव में फूलों से पराग व फूलों के रस (सेक्टर) पर ये परजीवी कीट जीवित रहते हैं। हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं की उपस्थिति बनायें रखनें हेतु आर्थिक क्षति बिन्दु (ई.टी.एल.) का ध्यान रखें पोषक कीटों की अनुपस्थिति में मित्र जीवों का पलायन हो सकता हैं।

5. रासायनिक कीट नियंत्रण (Chemical Control of Insect pest of Rice Crop)– कटुआ इल्ली की संख्या 1 इल्ली/पौधा होने पर फिपरोनिल 5 एस.पी. 1 लीटर/हेक्टेयर की दर से, केस वर्म (बंकी) का 1-2 खोल / पौधा होने पर क्लोरेट्रोनिलीपोल 18.5 ई.सी. 150 मि.ली./हे., पत्ती मोड़क (चितरी) की 1-2 पत्ती/पौधा होने पर फिपरोनिल 5 एस. सी. 800 मि.ली. / हे., तनाछेदक की तितली 1 मोथ/वर्ग मीटर होने पर फिपरोनिल 5 एस. सी. 1 लीटर/हे. या

रिनाक्सीपायर 150 ग्रा./हे. की दर से भूरा माहो 15-20 कीट/पौधा होने पर इथीप्रोल+इमिडाक्लोप्रीड 125 ग्रा./हे. या डायनोटेफ्यूरॉन 200 ग्रा./हे. या ट्राइफ्लुमिथोपाइरम 10 प्रतिशत एस.पी. 235 मि.ली./हेक्टेयर की दर से देवें। उपरोक्त दवाओं का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय में छिड़काव करना प्रभावकारी होता है। दवा की प्रभावशीलता को बनाये रखने के लिए साबुन के घोल का उपयोग किया जा सकता है।

Insecticide side effect

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