पौधों में फल न लगना या लगकर झड़ जाना समस्या का कारण एवं समाधान ।

खेती किसानी

वृक्षों में फल न लगना या झड़ जाना

वृक्षों में उचित फलन के लिए मात्र फूल आना ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि उतना ही महत्त्वपूर्ण फूल से फल बनना और परिपक्व होना है । फूल से फल बनना भी एक जटिल क्रिया है और यह क्रिया वृक्षों के आंतरिक एवं बाह्य घटकों (Internal and External Factors) द्वारा प्रभावित होती है। फूल से फल बनने में दो समस्याएँ आती हैं। प्रथम- फूलों का फल बनने से पहले झड़ जाना (Flower Drop); द्वितीय- फल बनकर गिर जाना (Fruit Drop)  ये दोनों समस्याएँ निम्न कारणों से हो सकती हैं :-

(1) विलगन पर्त का निर्माण,

(2) परागद का अभाव या परागण का न होना,

(3) पोषक तत्त्वों की कमी,

(4) वायुमण्डलीय वातावरण,

(5) रोग एवं कीट का आक्रमण ।

(1) विलगन पर्त का निर्माण (Formation of Abscission Layer)

फूलों तथा फलों में उनके डंठल के आधार पर एक विशेष तरह की कोशिकाओं की पर्त बन जाती है। यह कोशिकाओं की पर्त आकार में लगभग आयताकार और ढीली होती है। इनके अंदर खाद्य पदार्थ को पहुँचाने वाले ऊतक (Tissue) भी नहीं होते, इसलिए यह स्थान कमजोर पड़ जाता है। इसी स्थान को विलगन पर्त कहते हैं, जिसके बन जाने से फूल तथा फल वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं।

विलगन पर्त का निर्माण संभवतः वृक्ष में वृद्धि नियामकी के असंतुलन हो जाने के कारण होता है। वृद्धि नियामक के अलावा वृक्ष की दैहिकीय क्रियाओं (Physiological Activities) के असंतुलन परिणामस्वरूप भी विलगन पर्त का निर्माण हो सकता है। सभी फल वृक्षों में यह समान रूप से नहीं बनती है, इसलिए अलग-अलग फल वृक्षों में फूल तथा फल गिरने का क्रम भिन्न होता है ।

(2) परागद का अभाव (Lack Pollinisers) या परागण न होना (Lack Pollination)

फूल से फल बनने की क्रिया में परागण एक आवश्यक क्रिया है, जिससे पराग कण मादा फूलों में पहुँचते हैं और बीज का निर्माण होता है। बीज के निर्माण की क्रिया के साथ फल भी विकसित होता है। यदि यह क्रिया पूरी नहीं होती तो फूल असिंचित रहकर अंतत: झड़ जाते हैं । परागण के लिए पराग उत्पन्न करने वाले पौधे (पपीता अथवा सेब) तथा परागण करने वाले कीट दोनों को समुचित मात्रा में रहना आवश्यक है, जैसे- पपीता उद्यान में जिसमें कि नर और मादा पौधे अलग-अलग पेड़ पर होते हैं, 10% नर पौधे रहना आवश्यक है ।

परागण करने वाले कीटों की उचित संख्या भी आवश्यक है, इसलिए फल उद्यानों में मधुमक्खियाँ पालन फलन की दृष्टि से लाभदायी रहता है । आम की दशहरी किस्म में स्वयं बंध्यता (Self sterility) होती है, अत: परागण के लिए इस किस्म के वृक्षों के साथ अन्य किस्मों का रहना आवश्यक है ।

(3) पोषक तत्त्वों की कमी (Deficiency of Elements)

वृक्षों में पोषक तत्त्वों की कमी से फूल से फल विकसित होने में कठिनाई होती है और फल गिर जाते हैं। फलों को पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में न मिलने के कारण या तो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते या गिर जाते हैं। फॉस्फोरस, गंधक, बोरान (सुहागा) तत्त्व विशेष रूप से आवश्यक होते हैं। भूमि में नगी की कमी से भी फूल झड़ जाते हैं। जल के अभाव में पोषक तत्त्वों का भूमि से पर्याप्त मात्रा में अवशोषण नहीं हो पाता और वृक्षों में उनकी कमी हो जाती है। वृक्ष की दैहिकीय क्रियाएँ भी शिथिल हो जाती हैं और विकसित होते हुए फल में पोषक . तत्त्वों की संचार व्यवस्था कम हो जाती है, इसलिए फल गिर जाते हैं ।

(4) वायुमंडलीय वातावरण (Aumospheric Condition)

वायुमंडल की हवा में नमी में कमी हो जाने से फल झड़ना आरंभ हो जाता है। आर्द्रता के कम हो जाने से वाष्पोत्सर्जन की क्रिया अधिक हो जाती है, अर्थात वृक्षों से जल अधिक मात्रा में उड़ता है । भूमि से भी अधिक पानी उड़ता है। वृक्ष उस परिमाण में पानी भूमि से नहीं खींच पाता जितना कि में आर्द्रता उससे उड़ जाता है । अतः वृक्ष में जल के आतंरिक संघर्ष के कारण फल झड़ जाते हैं । तापक्रम अधिक हो जाने से वायु कम हो जाती है। सूखे क्षेत्र में फल झड़ने का यह प्रमुख कारण है । तेज, वायु, ओला आदि से भी फल और फूल झड़ जाते हैं ।

(5) रोग एवं कीटों का आक्रमण (Attack of Diseases and Insects)

रोग एवं कीटों के कारण फूल और फल झड़ना आरंभ हो जाता है। इसका प्रकोप वातावरण तथा उचित पौध संरक्षण उपाय न अपनाए जाने के कारण होता है। आम में काला धब्बा और चूर्णी फफूँदी रोग से फल झड़ जाते हैं ।

फूल एवं फल झड़ने से रोकने के उपाय

कुछ मात्रा में फूल और फल का झड़ना उचित ही है और यह प्राकृतिक क्रिया है । विकसित होते हुये फलों की प्रतिस्पर्धा के कारण ऐसा होता है । अधिक मात्रा में फूल और फल झड़ना हानिकारक है।

इसे रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं।

(1) वृद्धि नियामक पदार्थों का उपयोग (Use of Growth regulaters)

वृक्षों में वृद्धि नियामक पदार्थ (Growth regulating Substance) के असंतुलन को उचित बनाकर फूल एवं फलों को झड़ने से रोका जा सकता है। इन पदार्थों के उपयोग से विलगन पर्त का निर्माण नहीं हो पाता है। आम, नीबू, अंगूर, आदि में इनका पत्तियों पर छिड़काव उपयोगी होता है। आम में 2,4 डाइक्लोरो- फेनोक्सी एसीटिक एसिड (2,4 Dichlorphenoxy Acetic Acid), अंगूर में जिबरेलिक एसिड (Gibberellic Acid), अनन्नास में नैफ्थेलीन एसीटिक एसिड (Nepthalence Aceitic Acid) आदि। इन वद्धि नियामकों का उपयोग विवरण. फल उद्यानिकी के अंतर्गत दिया गया है।

(2) परागद की समुचित संख्या

परागद का मतलब ऐसे पौधों से है जिसमें नर फूल होता है, इसी से मादा फूल में परागकण जाकर परागण करता है और फल बनाता है । उद्यानों में परागद (Pollinizers) की उचित संख्या लगाकर परागण की क्रिया को प्रोत्साहित करते हैं । नर फूल वाले पौधों की संख्या सामान्य रूप से 10% संख्या होना अनिवार्य है । जैसे – पपीता । इसमें नर फूल और मादा फूल दोनों अलग-अलग पेड़ पर होता है।

(3) वृक्षों की सिंचाई

वृक्षों के पुष्पन के पश्चात् एक सिंचाई आवश्यक है, इससे जल की कमी से होने वाली अनेक समस्याएँ जिनके कारण फूल या फल झड़ जाते हैं, उत्पन्न नहीं हो पाती है । वायुमंडल की आर्द्रता भी बढ़ जाती है ।

(4) मल्च बनाना (Mulching)

वृक्षों के नीचे उनकी फैलाव की परिधि में घास बुरादा, धान का पुआल, पालीथीन चादर, आदि बिछा देने को मल्च बनाना कहते हैं। इससे वृक्ष के आसपास की आर्द्रता बढ़ जाती है। वाष्पोत्सर्जन भी कम हो जाता है । इस उपाय से फलों का गिरना तो कम हो जाता है किंतु दीमक की समस्या आ सकती है ।

(5) पोषक तत्त्वों का छिड़काव (Spraying of Elements)

पोषक तत्त्व विशेषंकर सूक्ष्म तत्त्व (MicroElements), जैसे – बोरान, जिंक आदि के छिड़काव से भी फलों का झड़ना कम हो जाता है । नींबू वर्गीय फलों में इन तत्त्वों का छिड़काव विशेष रूप से लाभकारी होता है । वृक्षों में फूल और फलों का झड़ना उचित उद्यानिक क्रियाओं, जैसे – उचित थाला न बनाना, कम सिंचाई करना, खाद और उर्वरक कम मात्रा में देना तथा वायु अवरोधक वृक्षों का अभाव आदि के उचित समय पर या ठीक से पूरा न किए जाने पर भी होता है । अतः फूल आने के पश्चात् भी उद्यानों की देखभाल में विशेष ध्यान देना चाहिए ।

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