धान की आधुनिक नर्सरी (Modern Paddy Nursery)@2024- वैज्ञानिक विधि से बिना मिट्टी का धान का थरहा (नर्सरी) कैसे तैयार करें। मात्र 10-12 दिनों दिनों में तैयार

धान की आधुनिक नर्सरी (Modern Paddy Nursery)

धान की आधुनिक नर्सरी
धान की आधुनिक नर्सरी

जहां धान की नर्सरी तैयार कर रहें है उस मिट्टी में निम्न गुण होना चाहिए 

  1. जहां पर नर्सरी तैयार कर रहे हैं उस मिट्टी में आसानी से पौधों का जड़ों का फैलाव हो जाने चाहिए, मतलब मिट्टी नरम होनी चाहिए।
  2. जहां पर नर्सरी तैयार कर रहे हैं उस मिट्टी में अंकुरण के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी होना चाहिए।
  3. मिट्टी से पौधों को वृद्धि और विकास करने के लिए उचित मात्रा में जल, वायु व पोषक तत्व प्राप्त हो जाए।
  4. फसल के पौधों के साथ विभिन्न पोषक तत्व जलवायु के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले खरपतवार के पौधे नहीं होने चाहिए या नष्ट कर देने चाहिए।
  5. ऐसी जगह की मिट्टी उपयोग नहीं करना चाहिए जहां पर उस फसल से संबंधित कीट या  बीमारी लगी हुई थी, क्योंकि इससे आपके नए फसल में  भी वह कीट या  बीमारी आ सकती है।
  6. मिट्टी में गोबर खाद का प्रयोग जरूर करें, क्योंकि इसमें एक तो संपूर्ण पोषक तत्व होते हैं, साथ ही साथ यह मिट्टी का भौतिक अवस्था को पौधों के अनुकूल सुधारता है।
  7. मिट्टी (बीज सैया) को जमीन से थोड़ा सा ऊपर बनाना चाहिए, जिससे पौधों को हवा और पानी सही तरीके से मिलता रहे। बहुत ज्यादा पानी भी छोटे पौधों के बढ़वार के लिए अच्छा नहीं होता।
  8. भारी दोमट/चिकनी मिट्टी जिसकी जल निकासी अच्छी हो सर्वोत्तम मिट्टी होती है। मिट्टी के जल धारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए, मतलब अधिक समय तक अधिक मात्रा में नमी को सोख कर रख सके, ऐसी मिट्टी होनी चाहिए।
  9. अगर हम आधुनिक तरीके से धान की नर्सरी तैयार करें तो हमारा समय के साथ, कम लागत में , अच्छी फसल ,अधिक पैदावार होगा और हमें बहुत कम मजदूरों की आवश्यकता होगी। इसलिए हमें आधुनिक तरीके से धान की नर्सरी तैयार करना चाहिए। इस लेख में मैं आपको धान की आधुनिक नर्सरी (जैसे -बिना मिट्टी का नर्सरी) तैयार करने की विधियों के बारे में बताने का कोशिश कर रहा हूं जिससे आपको लाभ हो सके, धान की उन्नत नर्सरी की इस लेख मे कुछ फोटो भी डाला गया है-

महत्वपूर्ण फोटो के साथ उपरोक्त विधियों का विवरण

Photoes Source– सभी फोटो Internet से लिया गया है 

Table of Contents

paddy nursery

धान की नर्सरी

1. इस फोटो में एक किसान धान के थरहे को चौकोर काट कर अलग से उठा लिया है

धान की नर्सरी

2. इस  फोटो में आप देख सकते है, कैसे धान के थरहे पॉलिथीन के ऊपर कितना अच्छे से तैयार हुआ है , जिसे हाथ से आसानी से एक साथ हटा रहा है।

 

धान की नर्सरी

3. चौकोर कटा हुआ धान का थरहा,अगल बगल में लगे होने के कारण जड़ आपस में मिल जाता है जिसे चाकू से काट लेना चाहिए जिससे बराबर निकले।

धान का फ्रेम 4. इस फोटो में आप देख सकते है की कैसे लकड़ी का फ्रेम बनाया गया है और एक T-आकार का एक लकड़ी और है जो बीज और मिट्टी को फ्रेम में समतल या फैलाने के लिए बनाया गया है ।

धान का फ्रेम

5. इस फोटो में देख सकतें है कि कैसे एक -एक फ्रेम अलग अलग बनाकर उसमे मिट्टी और खाद भरकर उसमे धान का थरहा तैयार कर रहें हैं।

धान की नर्सरी

धान की नर्सरी

6. धान का थरहा तैयार कर रहें हैं।

धान की आधुनिक नर्सरी

7. इस फोटो में देखिए मिट्टी को तयार करने के बाद केले का पत्ते को नीचे बिछाया गया है ,उसके ऊपर मिट्टी 1  इंच डाला जाएगा फिर उसके ऊपर बीज बोया जाएगा

धान की आधुनिक नर्सरी

8. इस फोटो में देखिए कैसे बीज उपचार करने के साथ-साथ बीज को अंकुरित करने के लिए कपड़े के थैले में डालकर फफूँदनाशक जैसे – बविस्टीन के घोल में 24 घंटे के लिए डुबाया गया है।

धान की आधुनिक नर्सरी

धान की आधुनिक नर्सरी9. इस फोटो में देखिए कैसे मिट्टी को एकदम कीचड़ युक्त (लेह युक्त)कर लिया गया है और एक चौकोर फ्रेम को प्लास्टिक के बोरी या पॉलिथीन को बिछाकर उसके ऊपर रखा गया है ,फिर इसमे लेह युक्त मिट्टी भारी जाएगी,फिर उसके ऊपर बीज डालकर ढँक दिया जाएगा।

धान की आधुनिक नर्सरी10. इस प्रकार फ्रेम में मिट्टी भरकर बराबर कर लिया जाता है , फिर बीज को नर्सरी तैयार करने के लिए इसके ऊपर फैला देते है , फिर पैरा , पत्तियां या केले के पत्ती या कपड़े से अंकुरित होने के लिए इसे ढँक देते हैं।

धान की नर्सरी

11. इस फोटो में जो काला रंग का दिख रहा है वो काला वाला नेट है , जैसे हरी नेट होती है, बेड में बीज बोने के बाद अगर पुआल , kapdaकपड़ा नहीं हो तो इसका प्रयोग कर सकतें हैं ।

धान की नर्सरी

 12. धान का थरहा तैयार

धान की नर्सरी 13. धान का थरहा तैयार होते हुए

धान की नर्सरी

14. देखिए कैसे तैयार पौधों को आसानी से कपड़े जैसा मोड़ते हुए

धान की नर्सरी

15. देखिए कैसे तैयार पौधों को आसानी से कपड़े/चादर जैसा मोड़ते हुए

धान की नर्सरी

16. इस फोटो में देखिए -पौधा और उसका जड़ कैसे चादर जैसे हो गया है, जो आपस में जुड़ा हुआ है , इसे आसानी से अलग किया जा सकता है। इसमे बिल्कुल भी मिट्टी नहीं डला है , बिना मिट्टी का तैयार नर्सरी का पौधा है ।

धान की नर्सरी तैयार करने की निम्नलिखित विधियां है

1. भीगी विधि (Wet Nursery)

इस विधि द्वारा नर्सरी तैयार करने के लिए खेत में पानी भर कर दो या तीन बार जुताई कीजिए ताकि मिट्टी लेह (कीचड़ जैसे- गाढ़ा मिट्टी) युक्त हो जाए और  खरपतवार नष्ट हो जाए। आखिरी जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके 1 दिन बाद जब मिट्टी की सतह पर पानी ना रहे तब खेत को 1.15 से 1.30 मीटर चौड़ी तथा सुविधाजनक लंबी क्यारियों में बांट लीजिए ताकि बुवाई, निराई, सिंचाई आदि क्रियाएं आसानी से की जा सके।

बीज दर प्रति 10 वर्ग मीटर (8 x 1.25 मी.) के लिए मोटे दाने वाली किस्मों में 800 ग्राम से 1 किलो तथा पतले दान वाले किस्मों के लिए 500 ग्राम से 750 ग्राम तक रखनी चाहिए। बोने से पहले प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्र की दर से 500 ग्राम डीएपी या 225 ग्राम यूरिया तथा 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट (राखर) अच्छी तरह मिला लेनी चाहिए। अंकुरित बीजों को समान रूप से बिखेर देना चाहिए।

वर्षा के कारण अगर बीज पानी में डूब जाए तथा धूप रहे तो पानी निकाल देना चाहिए। ऐसा न करने पर बीज सड़ जाएगा। आवश्यकतानुसार निराई, सिंचाई, रोगों तथा कीड़ों को रोकथाम आदि का उचित प्रबंध करना चाहिए। इस विधि में धान को घर में अंकुरित कर ही बीज सैया या मिट्टी में बोते हैं।

  • अगर पौधों में कीट व्याधि का संभावना दिखे तो कीटनाशक या आरक्षण दवाओं का छिड़काव करें। अगर सल्फर, जिंक की कमी दिखे तो भी सिफारिश कर्मचारी इनकी पूर्ति करें।
  • रोपाई के समय तरह निकालकर पौधों की जड़ों को पानी में डुबोकर रखें। पौधों को उसी दिन ही रोपाई कर देना चाहिए जिस दिन उसे उखाड़ आ गया होता है।
  • अगर रोपाई में विलंब होने की स्थिति हो तो नर्सरी के पौधों में यूरिया नहीं डालना चाहिए, यूरिया डालने से पौधों में जरूरत से ज्यादा वृद्धि हो जाती है।
  • अगर पौधों में नत्रजन की कमी के कारण पत्तियां पीली दिखाई देंगे तो 15 से 30 ग्राम डीएपी या 7 से 15 ग्राम यूरिया प्रति वर्ग मीटर छिड़काव करना चाहिए। यूरिया डालने से पहले अगर नर्सरी के पौधों के साथ खरपतवार हो तो उसे निकाल देना चाहिए।
  • सामान्य तौर पर धान के पौधों को 20 से 30 दिन के अंदर रोपड़ कर ही देना चाहिए जल्दी पकने वाली धान की रोपाई 20 से 25 दिन के अंदर करें मध्य में देर से पकने वाली किस्मों की रोपाई 25 से 30 दिन उपयुक्त होती है।
  • खेत मचाई के दूसरे दिन रोपाई करना ठीक रहता है। यदि रोपाई के समय खेतों में पानी अधिक भरा हो तो अतिरिक्त पानी की निकासी करें।

2. शुष्क विधि (Dry Nursery)

अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क विधि अपनानी चाहिए। अगर लगातार वर्षा होती है तो मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी यह विधि उपयुक्त होती है। इसमें खेत को शुष्क एवं नम अवस्था में तैयार करते हैं। तीन से चार बार जुताई कर मिट्टी भुरभुरी बना ली जाती है। खेत को समतल करने की विधि में दिए गए आकार के अनुसार 20 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनानी चाहिए। तथा मेड की जगह 30 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाना चाहिए जिसमे पानी भरते हैं और यहाँ से पौधों के जड़ में पानी जाता है। सूखे बीज को 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में 2 सेंटीमीटर गहरा बो देना चाहिए।

बीज खाद आदि की मात्रा भीगी विधि के अनुसार ही प्रयोग करना चाहिए। इस विधि में बीज को बिना अंकुरण किए ही सूखे अवस्था में ही बो देते  हैं।

3. डैपोग विधि -आधुनिक नर्सरी (Dapog Nursery)

पौधे उगाने की तीसरी विधि डैपोग( Dapog) है, इसे ही आधुनिक विधि भी कहते हैं, यह विधि फिलीपींस देश  में प्रचलित है। इस विधि में पौधों को बिना मिट्टी के उगाते हैं। बीज को 10 से 12 घंटे तक पानी में भिगोकर, बाद में निकाल कर इनको नम कर, किसी सूती कपड़े या जुट  के बोरों से ढक कर अंकुरित किया जाता है। ढकने के लिए भीगा हुआ पैरा भी उपयोग कर सकते हैं।

अंकुरित बीजों को 0.5 सेंटीमीटर मोटी तह, सीमेंट के फर्श पर फैलाकर (2% ढलान ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए) ऊपर से पॉलिथीन की चद्दर या पैरा या पत्तियों से 5 सेंटीमीटर मोटाई में ढक दिया जाता है।अगर पक्का फर्श ना हो तो नीचे पॉलीथिन का उपयोग कर सकते हैं। अंकुरित बीज को फैलाकर ढकने के बाद लगातार इसको नम  बनाए रखते हैं । प्रारंभ में  इसकी सुरक्षा चिड़ियों वगैरह से भी करनी पड़ती है। पौध तैयार करने में उर्वरक व खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती। धान की नर्सरी इस विधि से 10 से 15 दिनों में तैयार हो जाती है।

इस प्रकार की तैयार पौधों की रोपाई में विशेष ध्यान रखना पड़ता है। छोटे-छोटे पौधों को खेत में रोपने के समय सावधानीपूर्वक एक दूसरे से अलग करना चाहिए जिससे उनका जड़ टूटे ना। इस विधि में श्रम व पूंजी की बचत होती है। पोषक तत्वों की कमी व मृदा में अधिकता तथा विषैलापन  का प्रभाव से पौधों पर नहीं पड़ता है। इस प्रकार नर्सरी तैयार करने का प्रचलन आंध्र प्रदेश में भी अधिक है।

मचाई कर चुके खेत (लेह  युक्त मृदा) में  खेती करने के लिए, पौधरोपण से पहले, खेत में पर्याप्त पानी की उपस्थिति में एक जुताई करके दो से तीन बार हेलो या रोटावेटर चलाकर खेत को अच्छी तरह लेह युक्त बना सकते हैं। विभिन्न जातियों की आवश्यकता अनुसार सिफारिशें की गई उर्वरकों की मात्रा अंतिम तयारी के  समय खेत में समान रूप से बिखेर देते हैं। धान की नर्सरी वर्ष प्रारंभ होने से पहले तैयार करते हैं और वर्षा चालू होते ही खेत में रोप देते हैं।

पौधों की खेत में रोपाई 3 cm  की गहराई पर करना चाहिए। डैपोग( Dapog) विधि से उगाई गई पौधों को एक साथ तीन से चार पौधे खेत में लगाना चाहिए। पौधे लगाने के बाद खेत में 4 से 5 सेंटीमीटर पानी रहना आवश्यक होता है।

4. परिवर्तित डैपोग विधि-चटाई विधि  ( Modified Dapog/Mat Nursery)

इस विधि में भी अंकुरित बीज बोए जाते हैं। इस विधि में जहां पर पौधे तैयार करने होते हैं उस स्थान को समतल कर लिया जाता है, फिर वहां पॉलीथिन शीट बिछा लेते हैं। इसके ऊपर 1 मीटर लंबा, आधा मीटर चौड़ा तथा 4 सेंटीमीटर गहरा लकड़ी का फ्रेम रखते हैं। यह फ्रेम लकड़ी के अलावा खोखले लोहे का पाइप (चौड़ी वाली ) से भी बनाया जा सकता है, जो हल्की हो।

इस फिल्म में मिट्टी का मिश्रण (70% मिट्टी+ 20% गोबर की सड़ी हुई खाद+ 10% धान की भूसी) तथा 1.5 किलोग्राम डीएपी मिलाकर अच्छी तरह मिक्स कर लेते हैं तथा इसे उसके बाद उस लकड़ी या लोहे के फ्रेम में भर लेते हैं। बीज की निर्धारित मात्रा को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने के बाद पानी निकाल देते हैं। अब 90 से 100 ग्राम बीज प्रति वर्ग मीटर (1 x 1 मी.) की दर से समान रूप से बोकर या फैलाकर मिट्टी की पतली तह (5 मिलीमीटर या आधा सेंटीमीटर) से ढक देते हैं।

अब इस पर झारे की सहायता से पानी का छिड़काव करें जब तक की फ्रेम की पूरी मिट्टी तर ना हो जाए। मतलब पानी छींटे के रूप में देना है ताकि बीज फैले नहीं। अब लकड़ी का फ्रेम हटाकर उपयुक्त अनुसार अन्य क्यारियां तैयार कर लेने चाहिए। इस क्यारियों में 2 से 3 दिन के अंतराल से सिंचाई करते रहे।

बुवाई के 6 दिन बाद क्यारियों में पानी की पतली तह  बनाए रखें तथा रोपाई के 2 दिन पूर्व पानी निकाल दें। बोने के 8 से 10 दिन में चटाई युक्त रोपड़ी या थराहा तैयार  हो जाती है। इस विधि से तैयार किए गए पौधों का उपयोग श्री विधि से पौधे लगाने में किया जाता है। श्री विधि धान की खेती का सबसे उत्तम और आधुनिक मिली है जिसमें बहुत ही अच्छा और सबसे ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है।

इस विधि से तैयार पौधों को 2 सेंटीमीटर की गहराई पर केवल एक पौधा ही लगाया जाता है। इतने कम उम्र के पौधों को लगाने के पीछे का उद्देश्य यह होता है कि जब उसने कंस अवस्था आए तब आप नजर अच्छी तरह खेत में पकड़ लेने चाहिए। पुराने तरीके जिसमें 21 से 30 दिन के पौधों को खेत में रोपा   लगाया जाता है, उसको जड़ पकड़ने में 5 से 7 दिन लग जाता है इस कारण उसे उसका कंसा अवस्था का सही फायदा नहीं हो पाता।

कुछ महत्वपूर्ण बातें 

अधिकतर किसान भाइयों का सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनको नर्सरी तैयार करने का सही तरीका और समय नहीं पता होता, जिसके कारण सही तरीके से स्वस्थ पौधे नर्सरी में तैयार नहीं होता है, जिसके कारण उत्पादन में किसानों की बहुत कमी आती है। आज भी किसान भाई महंगे से महंगा हाइब्रिड धान के बीज को भी पुराने तरीके से धान की नर्सरी/थरहा तैयार करते हैं। जिसके कारण एक तो धान की नर्सरी सही समय में तैयार नहीं हो पाता और लेट में खेत में उसका रोपा लगाया जाता है।

जिसके कारण धान का जो कंसा अवस्था होता है जोकि 4- 21 दिन तक होता है। मतलब कंसा 21 दिन तक निकल गया होता है लेकिन आपको जब बड़ा हो जाता है तब दिखता है , जब धान की पहली पत्ती निकलती है टब कंसे भी मुख्य तने और पहली पत्ती के बीच से और जब तीसरी पत्ती निकलती है तब दूसरी पत्ती और तीसरी पत्ती के बीच से निकलती है, इसी प्रकार अन्य कन्से भी निकलते हैं।

अधिकतर मामलों में लगभग 35 से 40 दिन तक  धान का पौधा नर्सरी से उखाड़ कर खेत में लगाया जाता है , जिसके कारण कंसा कमजोर होने के कारण कितने भी अच्छे हाइब्रिड का बीज हो जितना कंसा देना चाहिए उससे कम देता है या उसका विकास सही नहीं हो पाता, जिसके कारण उत्पादन में भारी गिरावट आता है।

इसके कारण से उत्पादन कम होता है, और किसानों को लगता है कि उसका हाइब्रिड बीज/उन्नत किस्म का बीज की क्वालिटी अच्छी नहीं थी, बहुत कम कंसा आया।इसी कारण श्री विधि से धान की खेती करते हैं टब 10-12 दिन का पौधा रोपण किया जाता है , ताकि कंसा अवस्था में पौधों को ज्यादा परेशानी न हो अच्छी तरह अपना जड़ जमा सके। फलस्वरूप श्री विधि से खेती में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है।

35 से 40 दिन का जब फसल हो जाता है उसके बाद भी कंसा आते हैं लेकिन वह कंसा हमारे लिए लाभदायक नहीं होता क्योंकि उसमें अच्छी क्वालिटी की बालियां नहीं आती है, और कमजोर बालियां आती है, जो हमारे लिए लाभदायक उतना नहीं होता। क्योंकि जो भी हम बीज/धान लगाते हैं उसका एक निश्चित फसल अवधि होती है, जैसे- 3 से 4 दिन में अंकुरण होना, 21 दिन में कंसा  निकलना चालू होना, 56 से 60 दिन में गभोट अवस्था और उसके बाद परिपक्व अवस्था, फिर फसल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

इसलिए हर चीज का एक समय होता है उसी समय में अगर हम उसको वह चीज देते हैं तो ही फसल अच्छा उत्पादन देगा।सामान्य तरीके से धान की नर्सरी तैयार करने पर उसको उखाड़ने, बंडल बनाने, रखरखाव, एक खेत से दूसरे खेत में ले जाने, बहुत सारे बीज का अंकुरण ना होना, पौधे को नर्सरी से उखाड़ते  समय उसकी जड़ का टूट जाना, कीड़े और रोगों का धान की नर्सरी के साथ दूसरे खेत में चले जाना इत्यादि समस्याएं आती है। 

जिसके कारण जिन किसान के पास बहुत सारा खेत है उनको मजदूर भी कम मिलता है और समय पर नहीं मिल पाता तो उनको बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है और समय में उनका फसल लग भी नहीं पाता, जिसके कारण उसको उत्पादन नुकसान होता है।

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Reference

  1. फसल उन्नयन -1, खरीफ फसलें , लेखक – डॉ. ओमकर  सिंह
  2. सस्य विज्ञान के सिद्धांत एवं फसलें , लेखक – डॉ. आई पी एस अहलावत एवं डॉ ओम प्रकाश
  3. फोटो सोर्स- गूगल  एवं youtube videos

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