धान की खेती की विशेष जानकारियाँ जिनका ध्यान रखकर खेती करने से अच्छी पैदावार हो सकती है। इस लेख से आपको धान की खेती में जरूर फायदा होगा @2024

धान की खेती की विशेष जानकारियाँ

Table of Contents

धान का महत्व एवं उपयोग(Important and Utility of Rice)

विश्व में चीन भारत, पाकिस्तान, जापान, कोरिया,  श्रीलंका, इंडो, चाइना, थाईलैंड, मलाया, फिलिपींस और मेडागास्कर में संसार का आधे से अधिक जनसंख्या का प्रमुख भोजन चावल है । धान का संसार में 90% उपज का उपयोग एशियाई क्षेत्र में ही है । धान भारत की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण फसल है ।कूल क्षेत्रफल के लगभग एक तिहाई भाग पर धान की खेती की जाती है । विश्व में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों में क्षेत्रफल की दृष्टि से चावल का ही प्रथम स्थान है ।

चावल का प्रयोग विभिन्न उद्योगों में भी किया जाता है क्योंकि चावल में स्टार्च  पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है और वह विशेष रूप से कपड़ा उद्योग में इसका अधिक प्रयोग होता है और चावल के हरे पौधों का उपयोग जानवरों के चारे के लिए भी किया जाता है । सूखे पौधों को जानवरों के नीचे बिछाने के रूप में काम लिया जाता है । इसे समान एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते समय पैकिंग के लिए भी प्रयोग किया जाता है ।

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धान की उत्पत्ति का इतिहास

भारत में धान की खेती का प्रारंभ 3000 ईसापुर वर्ष में हुआ बताते हैं (पार्थ सारथी,1960)। घोष चौधरी व साथिया 1960 के अनुसार संसार का प्राचीनतम जला हुआ चावल उत्तर प्रदेश में हस्तिनापुर नगर की खुदाई में पाया गया है । इस स्थान यीशु मसीह से 1000 वर्ष पूर्व का बताया जाता है । धान का वर्णन हिंदू धर्म व आयुर्वेद के पुरातन ग्रंथों में भी पाया जाता है । इसके अतिरिक्त वैदिक धार्मिक कृतियों में चावल के दानों का उपयोग किस फसल का भारत में आदि काल से होना सिद्ध करता है ।

ऐसा भी समझा जाता है कि दजला और फरात की घाटियों में तथा ग्रीस देश में चावल भारत से ही ले जाया गया था ।मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई उसे प्राप्त चावलों के आधार पर कुछ विद्वानों का मत है कि भारत में चावल यीशु मसीह है से 5000 वर्ष पूर्व से ही उगाया जा रहा था । इन सभी तथ्यों के आधार पर कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि चावल का जन्म स्थान भारत ही है । कुछ वैज्ञानिकों का यह भी विचार है कि धान का जन्म स्थान इंडोचाइना भी है ।

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धान की खेती(rice cultivation) के लिए उपयुक्त जलवायु

धान की खेती समुद्र तल से भी नीचे क्षेत्रों से लेकर 2500 मीटर तक की ऊंचाई तक की जा सकती है । लेकिन केरल में कुछ स्थानों पर समुद्र तल से भी नीचे धान सरलता पूर्वक उगाया जाता है । धान की अच्छी वृद्धि के लिए उच्च तापक्रम व उच्च आद्रता तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है । जिन प्रदेशों में वार्षिक वर्षा 140 सेंटीमीटर से अधिक होती है, धान की फसल वर्षा के आधार पर ही सफलतापूर्वक उगाई जाती है ।

100 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा वाले प्रदेशों में धान की खेती के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध होना आवश्यक होता है । पौधों की वृद्धि के लिए विभिन्न अवस्थाओं पर किससे 37 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है ।

फूल आने के लिए 26.5 डिग्री से 29.5 डिग्री सेंटीग्रेड, पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता होती है । पौधों की वृद्धि के समय अधिकार की आवश्यकता होती है । परंतु फसल के पकने के समय लाभदायक होता है ।

धान की खेती(rice cultivation) के लिए भूमि

धान की खेती के लिए भाटी दोमट भूमि जिनका जल निकासी हो सर्वोत्तम सिद्ध हुई है । धान चिकनी कांकरिली पथरीली, अल्लुवियल, छारीय हल्की दोमट मिट्टी ओं में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। जिन भूमियों में जल धारण करने की क्षमता कम होती है अथवा जीवांश पदार्थ की कमी होती है, मान की अच्छी उपज नहीं मिलती है। भूड़ तथा रॉकर मिट्टियां इसकी खेती के लिए ठीक नहीं रहती है।  धान की खेती हल्की अम्लीय मृदा से क्षारीय मृदा पर भी की जा सकती है । 4.5 से 8.0 इंच वाली भूमियों में धान भली प्रकार उगाया जाता है। 

धान की उन्नत जातियों के गुण

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धान की खेती (rice cultivation) के प्रकार

1. निचली मृदा में धान की खेती

(A.) लेह युक्त मृदायों में खेती

(i) रोपण विधि ( Transplanting method)
(a.) पौध विधि (nursery method)
(b.) डेपोग विधि (depog method)
(ii) खेत में सीधी बुवाई (Direct seedling method)
(a) पंक्तियों में बुवाई (showing in line)
(b) छिटकवाँ विधि ( Broadcast method)

(B.) लेह रहित मृदाओं में धान की खेती ( cultivation of paddy in uppuddled soil)

(a.) पंक्तियों में बुवाई (showing in line)
(b.) छिटकवाँ विधि ( Broadcast method)

2. ऊंची मृदाओ में धान की खेती (Upland paddy cultivation)

(a.) पंक्तियों में बुवाई ( Seed drill method)

(b.) छिटकवाँ विधि ( Broadcast method)

ऊपरोक्त सभी विधियों का वर्णन 

(i) रोपण विधि ( Transplanting method)
(a.) पौध विधि (nursery method)
 ऐसी मृदाओं में अधिकतर पौधे लगाकर ही धान की खेती करते हैं। पौधे लगाने के लिए छोटी-छोटी क्यारियां की आवश्यकता होती है। बीज सैया के लिए ऐसी भूमि छटनी चाहिए जहां पर सिंचाई की सुविधा पर्याप्त हो।

पौध तैयार करना/ nursery तैयार करना  (Paddy Nursery Preparation)

उपजाऊ जमीन एवं अच्छे जल निकास वाले खेत में धान की नर्सरी उगाना चाहिए जो कि सिंचाई साधन के पास हो। एक हेक्टेयर रोपाई के लिए 500 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र मतलब जितना जमीन विधान लगाना है उसका विश्वा भाग में धान की नर्सरी तैयार किया जाता है। धान की नर्सरी 15 जून तक दे देनी चाहिए। धान की नर्सरी तैयार करने की आधुनिक विधि के बारे में जानने के लिए इस लिंक को क्लिक करके पढ़ें फोटो के साथ बहुत अच्छे से वर्णन किया गया है।

Modern Paddy Nursery- धान की आधुनिक नर्सरी- वैज्ञानिक विधि से बिना मिट्टी का धान का थरहा (नर्सरी) कैसे तैयार करें। मात्र 10-12 दिनों दिनों में तैयार

धान की रोपाई कैसे करें (Cultivation of Rice- Transplanting of rice plants)

जब पौधे 20- 25 दिन की हो जाए तो रोपाई कर देनी चाहिए। अच्छी तरह लेह लगाकर जुताई  किए गए खेत में 20 x 30 सेंटीमीटर की दूरी पर दो पौधों को रोपना  चाहिए। पौधे को दो से 3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा नहीं रोपण करना  चाहिए। रोते समय खेत में पानी की पतली तह होनी चाहिए। ताकि पौधों को उथला रोपा जा सके। पौधे पुरानी हो जाने पर एक ही स्थान पर 4 से 5 पौधे रोपे जाने चाहिए।

Dhan ki Kheti में जल प्रबंधन कैसे करें( water management in rice farm)

रोपाई के दूसरे दिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए और अगर खेत में पानी हल्की ऊपर में है तो सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। बाद में जलस्तर 5 सेंटीमीटर तक बढ़ा देना चाहिए। साधारण अवस्था में दानों में थोड़े थोड़े सख्त होने या कटाई के समय तक इस जल स्तर को बनाए रखिए। खरीफ में  वर्षा के रुक जाने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए। यदि खेत की मिट्टी पानी से तर है तो खेत को पानी से पूरा भरने की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी खेत में भरा हुआ पानी खास बात को बढ़ने से रोक देता है।

(ii) खेत में सीधी बुवाई (cultivation of rice Direct seedling method)

लेहयुक्त मृदाओ में पौधरोपण के स्थान पर अंकुरित बीजों को खेत में छिटक कर अथवा पंक्तियों में बो सकते हैं। सिंचाई की सुविधा होने पर लेह, वर्षा से 2 सप्ताह पहले लगाकर भी इस प्रकार की बुवाई कर सकते हैं। अगर सिंचाई की सुविधा नहीं है तो वर्षा आरंभ होने पर खेत में बुवाई करते हैं। छिटकवाँ विधि से 100 से 120 किलोग्राम बीज व  पंक्तियों में 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बोने से 60 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है।

एक हेक्टेयर मतलब 2.47  (ढाई एकड़)। प्रारंभ में खेत में 1 सेंटीमीटर पानी खड़ा रखते हैं। लेकिन बाद में जैसे-जैसे फसल बढ़ाती है खेत में पानी दो से 5 सेंटीमीटर खड़ा रख सकते हैं।

नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एग्रीकल्चर साइंस जापान ने धान के बीच के ऊपर कैल्शियम पराक्साइड की परत (कोटिंग) चढ़ाकर, धान के बीज की अपूर्व कूलर की आशंका को कम किया है। पौधरोपण में समय व श्रम को बचाया है। इस प्रकार के बीजों को खेत में नीचे कीचड़ में बोया जाता है। यह कैल्शियम पराक्साइड बीजों को काफी ऑक्सीजन देता है। नए बीजों की जड़े गहरे बुवाई के कारण पौधों को स्थिर रखती है तथा हवा से पौधों को हानि नहीं हो पाती है।

(B.) लेह रहित मृदाओं अथवा सूखे खेत में धान की खेती ( cultivation of paddy in uppuddled soil)

इसके लिए हमेशा धान की बौनी  किस्मों का चयन करना चाहिए जो उत्पादन अधिक देता हो। धान को कूड़ों (furrow) मैं सफलतापूर्वक बो सकते हैं। पलेवा (pre sowing irrigation) करके एक बार हल्से वह दूसरी बार है रो से जुदाई करते हैं। खेत की तैयारी के समय पर ही उर्वरक खेत में संस्थापन विधि से , बोने वाली पंक्तियों के साथ 4 सेंटीमीटर की गहराई पर डाल देते हैं। बीज 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोते हैं। बीज को वर्षा होने से पहले ही खेत में बो सकते हैं।

वर्षा मानसून आने से पहले ही बीच खेत में ही अंकुरित हो जाते हैं। बीज अंकुरित होने के बाद अगर वर्षा ना हो तो बीच-बीच में वर्षा होने तक सिंचाई करते रहते हैं। अवसर प्राप्त हो तो निराई गुड़ाई भी करनी आवश्यक होती है।

छिटकवाँ  विधि से पहले उर्वरक को समान रूप से खेत में चिपक कर मिट्टी में मिला देते हैं और फिर 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीच खेत में बिखेर दिया जाता है। बीच खेत में भी बिखेरने के बाद हल्की सी मिट्टी में मिलाना आवश्यक होता है। अंकुर के बाद वर्षा होने तक सिंचाई करते रहते हैं। वह समय मिले तो निराई गुड़ाई भी करते रहते हैं। परंतु यह  विधि ज्यादा ठीक नहीं है।

सीधी  बोई गई फसल में खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। रोपा  विधि से धान लगाने पर  खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलती है। रोपा (लेह) विधि से धान लगाने पर मृदा में जल रिसाव (percolasion) कि दर  घटती है। इस क्रिया में मृदा के भौतिक अवस्था बिगड़ जाती है। आगामी फसल की जुताई में भूमि अच्छी तैयार नहीं हो पाती।

2. ऊंची मृदाओ में धान की खेती (Upland paddy cultivation)

ऊंची मृदाओं में धान की खेती वर्षा मानसून पर ही निर्भर करती है। वर्षा आरंभ होने पर ही, छिटकवाँ  अथवा लाइन में धान की बुवाई करते हैं। ऊंची मृदाओं  में धान की खेती के लिए खेत में पानी भरा रखने के लिए कोई अवस्था नहीं होती। ऐसी मृदाओं  में नत्रजन का एक चौथाई भाग फास्फोरस तथा पोटाश पूरा का पूरा बोने के समय पर दे देते हैं।

धान में खाद की मात्रा (Fertilizer dose of Paddy/Acre)

पर्वतीय क्षेत्रों में अच्छी उपज लेने के लिए 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस वह 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।

नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा आखरी बार सोते समय यह ले लगाते समय एक समान बिखेर कर ऊपरी 15 सेंटीमीटर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। चौपाई के 25 से 30 दिन बाद  करनी चाहिए। दूसरे के  टॉप ड्रेसिंग 50 से 60 दिनों बाद करनी चाहिए। किसी भी अवस्था में खाद डालते समय खेत में अधिक पानी खड़ा नहीं होना चाहिए। अगर फसल में जस्ते की कमी पिछले वर्ष देखे गए हो तो उन खेतों में 25 से 30 किलोग्राम जिंक सल्फेट बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।

यदि ऐसा नहीं है तो कमी के उपरोक्त लक्षण दिखाई देने पर 500 ग्राम जिंक सल्फेट और 2 किलोग्राम यूरिया को 100 लीटर पानी में घोलकर एक 1 सप्ताह बाद दो से तीन बार लगातार छिड़काव करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाए की धान में जैसे ही फसल में आयरन की कमी के लक्षण देखे जाए तो फेरस सल्फेट का 1% का घोल बनाकर 1 सप्ताह के अंदर दो से तीन बार करना चाहिए।

धान के फसल में प्रति एकड़ कौन सी खाद / उर्वरक कब और कितना मात्रा में डालना चाहिए ,उसकी पूरी जानकारी के लिए नीचे क्लिक कर पढ़ें-

हाइब्रिड एवं देशी धान के किस्मों में अधिक उत्पादन पाने के लिए संतुलित खाद का मात्रा प्रति एकड़ कब और कितना डालना चाहिए पढ़ें, एक बार देख लेवें (2023)

खाद की किस्म (Types of Fertilizers)

पोषक तत्वों को प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्बनिक और अकार्बनिक खादों का प्रयोग करते हैं। कार्बनिक खादों जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट (केंचुआ खाद), व विभिन्न खलियां  मैं अनुसंधान के परिणाम अनुसार कंपोस्ट खाद धान की खेती में देना बहुत उत्तम पाया गया है। विभिन्न खलियों का प्रभाव भी अच्छा रहता है। अमोनियम सल्फेट के बराबर ही उपज देता है।

हरी खाद के लिए सबसे ज्यादा ढेंचा  प्रयोग करते हैं। मानसून से पहले ढेंचा का बीज 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिटका जाता है। 4 से 6 सप्ताह की फसल को खेत में जोत देते हैं। फूल आने से पहले या फुलाने के तुरंत बाद इसकी जुताई कर खेत में मिला देंगे चाहिए। यह इसके लिए सबसे सही समय होता है। हरी खाद के प्रयोग से भी लाभदायक परिणाम प्राप्त होते हैं क्योंकि सभी पोषक तत्व खेत को मिल जाता है जिससे पौधों का बढ़वार और उपज अच्छा प्राप्त होता है।

अकार्बनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन के लिए प्रयोग किए गए विभिन्न इमाइड व अमोनिकल उर्वरक  जैसे यूरिया व अमोनियम सल्फेट , नाइट्रेट उर्वरक जैसे-सोडियम नाइट्रेट आदि की अपेक्षा अच्छी सिद्ध होते हैं। जिन खातों में नाइट्रेट रूप में नत्रजन होती है; धान के खेतों में नत्रजन कहां से अधिक होता है। अमोनियम अमाइड  नत्रजन का लीचिंग सेहार अधिक नहीं हो पाता है। साथ ही साथ धान की फसल नाइट्रोजन के अमोनिकल रूप को सीधे ही ग्रहण कर लेती है।

यूरिया के वजन की 6 गुना नम मिट्टी यूरिया के साथ मिलाकर लगभग 48 घंटे तक छाया में रखते हैं। एमाइड अमोनिया में बदल जाती है। से धान के खेत में प्रयोग करते हैं। इससे  नाइट्रोजन की हानि धान के खेत में नहीं हो पाती है। फास्फोरस को सुपर फास्फेट के रूप में दिया जाता है। पोटाश को पोटैशियम क्लोराइड या पोटेशियम सल्फेट के रूप में दिया जाता है।

नीली हरी काई(ब्लू ग्रीन एलगी) का धान के उत्पादन में महत्व(role of blue green algae in rice cultivation)

नीली हरी काई (BGA) की अधिकतम जातियां नत्रजन का मृदा में एकत्रीकरण करती हैं. नीली हरी काई (BGA) की एक जाति  Tolypothrix tenuis प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम नत्रजन खेत में इकट्ठा कर देती है. अतः इस नीली हरी काई (BGA)  से धान की उपज बढ़ाने के लिए विभिन्न उर्वरकों को इसके साथ खेत में देते हुए 55 प्रभाव देखा और पाया गया कि-

  1. अकार्बनिक उर्वरक नीली हरी काई (BGA) के साथ खेत में दिए जा सकते हैं. नीली हरी काई (BGA) के नत्रजन एकत्रीकरण पर इन उर्वरक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  2. धान की फसल में नीली हरी काई (BGA) के साथ 80 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर उर्वरक देने पर अच्छी उपज प्राप्त होती है. अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि नीली हरी काई (BGA)  के द्वारा 40 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर धान की फसल को प्राप्त हो जाती है. प्रयोग के अंदर फास्फोरस व पोटाश रोपाई के समय ही खेत में दे दिए गए. सीधे बॉय गए खेत में या असिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम, वोल्टास 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई परी देते हैं।
  3. एलगी कुछ ऐसे जैविक पदार्थ जैसे विटामिन व हार्मोन बनाती है जो पौधों को स्वस्थ रखते हैं व नत्रजन आदि उर्वरकों की उपयोगिता बढ़ाती हैं, भूमि के गुणों में सुधार करती हैं।
  4. भूमि में सोडियम लवण की मात्रा को कम करती है।

धान की खेती (rice cultivation) में सिंचाई (Irrigation in paddy crops)

धान की फसल को पानी की आवश्यकता अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है। क्योंकि इसका जल उपयोग क्षमता सभी फसलों से बहुत कम होता है। मतलब यह जितना पानी हम देते हैं उसका बहुत ही कम मात्रा को ही अपने उपयोग में ला पाती है। जल की आवश्यकता धान की जातियों के अनुसार बदलती रहती है। कुछ जातियां ऐसी होती है जो बहुत ही कम पानी में हो जाती है और कुछ जातियां ऐसी होती है जिसको बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है जैसे इंदिरा बरानी  धान- इसको बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है।

पानी की आवश्यकता के हिसाब से धान को तीन भागों में बांटा गया है-

  1. औस या आटम धान (Autumn rice)- इस धान के लिए कुल 100 हेक्टेयर सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी में 25 हेक्टेयर सेंटीमीटर, पौधरोपण के लिए 15 हेक्टेयर सेंटीमीटर, व रोपण से  फसल पकने तक 60 हेक्टेयर सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है।
  2. अमन धान (Aman Rice)- इस धान को 90 हेक्टेयर सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। पौधे उगाने के लिए 25 हेक्टेयर सेंटीमीटर, लेह बनाने के लिए 15 हेक्टेयर सेंटीमीटर, रोपड़ से बालियों में दाने पकने तक 50 हेक्टेयर सेंटीमीटर जल की आवश्यकता होती है।
  3. बोरो धान (Boro Rice)-इस धान के लिए कुल जल की आवश्यकता 150 से 190 हेक्टेयर सेंटीमीटर होती है। पौध तैयार करने के लिए 25 से 40 हेक्टेयर सेंटीमीटर, रोपड़ के लिए 15 से 20 हेक्टेयर सेंटीमीटर, व रोपड़ से फसल पकने तक के लिए 110 से 120 हेक्टेयर सेंटीमीटर जल की आवश्यकता होती है। बोरो धान में सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है।

धान की फसल में पानी की सबसे ज्यादा आवश्यकता कब होती है?

  1. पौधरोपण के समय- पहले 10 दिन तक।
  2. फूल आने से पहले व फुलाने की अवस्था में-लगभग 25 से 30 दिन या अवस्था रहती है।
  3. दाना बनने की अवस्था 5 से 8 दिन तक।

अगर इस अवस्था में पानी की कमी हो जाती है तो फसल की उपज में भारी कमी आ जाती है। धान की बाबौनी  जातियों में 5 सेंटीमीटर से अधिक पानी खेत में खड़ा ना होने दें। कल्ले फूटते  समय व फूल आने की अवस्थाओं में अगर हो सके तो खडा  पानी निकाल दे वह ताजा पानी भर देना चाहिए।

धान की खेती (Rice cultivation) में निराई गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण (Interculture operation and weeding in rice)

खरपतवार ओं की समस्या पराया ऊंची भूमियों में अधिक होती है। धान की खेती जिन क्षेत्रों में ऊंची भूमियों में करते हैं वहां पर अवसर मिलने पर 20- 25 दिन बाद एक निराई गुड़ाई खुरपी की सहायता से कर देते हैं। वैसे बैलों  द्वारा चलित यंत्र हैरो, जापानी हो, अंबिका पैड़ी वीडर  आदि का प्रयोग भी कर सकते हैं। दूसरी निराई की आवश्यकता पड़ने पर रोपाई के 40 से 45 दिन बाद करते हैं।

लेह युक्त धान की फसल में खरपतवार ओं के विशेष समस्या नहीं होती है। धान रोपाई के समय जो खरपतवार खेत में गए होते हैं उन्हें उखाड़ कर खेत में गहरे दबा देते हैं। निचली मेरी जमीन में जहां पानी भरा रहता है, हाथ से खरपतवार उखाड़तें  हैं। तथा छोटे यंत्रों द्वारा जैसे-जापानी राइस वीड, हंसियाँ या खुरपी की सहायता से खरपतवार निकालते हैं। जापानी राइस वीडर का प्रयोग करने के लिए पंक्तियों के बीच का अंतर 22 सेंटीमीटर रखना आवश्यक होता है। खरपतवार नियंत्रण को रोपाई के 25 से 30 दिन बाद होता है। निजी भूमियों में भूमि जलमग्न करके खरपतवार नियंत्रण करते हैं। 

इसे भी पढ़ें- मानव चलित एवं पशु चलित Best 15 कृषि यंत्र।

धान में रासायनिक विधि से खरपतवार  का नियंत्रण

धान के खेत में सिलेक्टिव टाइप खरपतवार नासी जैसे 24 -D के एमिन या एस्टर यौगिक , स्टॉप f34 (प्रोपेनील), माईचेटि व साइटर्न का प्रयोग किया जाता है। किस खरपतवार नाशी की कितना मात्रा, किस विधि से, किस समय खेत में दें तालिका 1.4 में प्रदर्शित किया गया है। स्टांप f34 रसायन को खेत में छिड़कने से पहले खेत से पानी का निकास कर देना चाहिए। तथा 2 से 3 दिन बाद पानी खेत में चुना लगा सकते हैं। नाइट्रोजन व कीटनाशक दवाई के साथ मिलाकर ना छिड़काव करें। मेलाथियान व पैराथियान दवाई के छिड़कने से 15 दिन पूर्व 15 दिन बाद तक यूरिया कीटनाशक दवाई ना छिड़कें।

धान में फसल चक्र कैसे अपनाएं (Crop rotation for rice)

1 वर्षीय फसल चक्र

धान-बरसीम, धान-चना, धान -गेहूं, धान -जई , धान -आलू -सोयाबीन, धान -आलू -मक्का, धान -मटर, धान- गेहूं -लोबिया या मूंग

2 वर्षीय फसल चक्र

मूंग- धान, ज्वार -गेहूं

धान -मटर, धान -गन्ना

धान -मटर , ज्वार -गेहूं

धान -बरसीम, धान- गेहूं

धान की कटाई -मडाई कब करना चाहिए ?(harvesting time of rice crop)

  • विभिन्न जातियां 100 से 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। बालियां निकलने के 25 से 30 दिन बाद अधिकतर जातियां पक जाती हैं। दोनों में दूध गाढ़ा, सख्त होने पर कटाई की जा सकती है। कटाई हंसिया आदि से करते हैं। शक्ति चलित यंत्रों से कटाई करने के लिए खेत पकड़ने से पहले जल निकास करके खेत को सुखा लिया जाता है।
  • फसल की मड़ाई डंडे की सहायता अश्वशक्ति चलित मड़ाई यंत्र जैसे थ्रेसर, हार्वेस्टर से कर लेते हैं। अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र फिलीपींस में ड्रम के आकार का शक्ति चलित मड़ाई का यंत्र तैयार किया गया है जिसमें उसाई भी साफ-साफ हो जाती है।
  • धान के दानों को तब तक सिखाया जाता है जब तक कि उसमें 14% नमी ना रह जाए। धान की कुटाई करने पर चावल के छिलके का अनुपात 2:1 अनुपात  मिलता है। मतलब 2 भाग चावल: एक भाग छिलका। आमतौर से 1 क्विंटल धान से 65 किलो तक चावल प्राप्त होता है।
  • भंडार के लिए चावल को बोरों में भरकर पक्के भंडारों में रखना चाहिए अन्यथा कीड़े जैसे borer beetle व rise moth भंडार में चावल को हानि पहुंचा सकते हैं। फफूंदी के आक्रमण से बचाने के लिए, फफूंदी नाशक दवाई भी चावल में मिला सकते हैं। भंडार को रसायनों द्वारा किट सहित कर लेना चाहिए।

धान की अधिक कल्ले प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए (for more tillers in paddy)

  • नाइट्रोजन के उर्वरक रोपाई के 30-40 दिन तक दे देनी चाहिए।
  • अगेती किस्म का प्रयोग करें। जो जल्दी आ जाता है।
  • खेत में हमेशा उथला  पानी देना चाहिए।
  • ठंडे मौसम में कंसों की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा सूखे मौसम में कन्से  ज्यादा निकलते हैं।
  • धान की रोपड़ 21 दिन तक कर देना चाहिए, ज्यादा लेट मैं रोपड़ करने पर कम से कम हो जाते हैं।
  • जोकन से 30 से 40 दिन के अंदर आ गए रहते हैं वही कंसा  हमारे लिए फायदेमंद होते हैं, जो उसके बाद आता है वह हमारे काम का नहीं होता क्योंकि उसमें बालियां बहुत ही छोटी या रोग ग्रस्त लगती है।

धान की उपज (yield of rice)

देसी जातियों कीछिटकवाँ विधि से खेती करने पर 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ तथा उन्नतशील जातियों की खेती करने पर 25 से 30 क्विंटल व अच्छे किस्म की हाइब्रिड जातियों की खेती पड़ने पर 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ इधर से उत्पादन प्राप्त होता है।

Refference

सस्य विज्ञान के सिद्धांत एवं फसलें – डॉक्टर- आई. पी. एस. अहलावत, रामा पब्लिशिंग हाउस , मेरठ,  पेज नंबर -33-64

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