फलों का पकना
सामान्यतः फल का पकने का मतलब फलों के कार्बोहाइड्रेट का ग्लूकोज में बदलना है, जिससे फल मीठा और नरम हो जाता है।
पकने पर फल का रंग , आकार, स्वाद आदि बदल जाता है। पौधों का भोज्य पदार्थ फलों में कार्बोहाइड्रेट के रूप में सुरक्षित रहता है।
जब फल परिपक्व हो जाता है तब यही कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज में बदल जाता है, जिसके कारण फलों में मीठापन आता है।
समन्यतः पौधों में यह ऑटोमैटिक होता है। फल पकने के समय फलों का श्वसन का दर बढ़ जाता है, जिसके कारण पौधों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ जाती है।
ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज में टूटने लगता है। ग्लूकोज भी कार्बोहाइड्रेट का एक प्रकार है, लेकिन इसमें मिठास होता है जबकि कार्बोहाइड्रेट में मिठास नही होता।
श्वसन का मतलब ऑक्सीजन का लेना और कार्बन डाई ऑक्साइड का छोड़ना होता है। मतलब फलों का पकना श्वसन के दर पर निर्भर करता है।
श्वसन के दर को दवाइयों के द्वारा आसानी से बढ़ाया जा सकता है। जैसे एथिलिन गैस हार्मोन द्वारा । एथिलिन गैस बनाने के लिए कार्बाइड पत्थर का उपयोग किया जाता है या एथेफोन नाम का दवाई मिलता है। जो पानी के संपर्क में आते ही इथिलिन गैस उत्पन्न करने लगता है, जिससे फलों को पकाया जाता है।
नोट – पेड़ से तोड़ने के बाद सिर्फ ऐसे फलों को पकाया जा सकता है जिसमे तोड़ने के बाद भी श्वसन क्रिया चलती रहती हो , श्वसन बंद नहीं होती है।
उदाहरण – आम ,लीची, केला, चीकू, सीताफल, पपीता, टमाटर, रामफल , अनानास, सेव, किवी, इत्यादि।
कुछ फलों को पेड़ से तोड़ने के बाद नही पकाया जा सकता क्योंकि पेड़ से टूटते ही उनमे स्वसन की क्रिया बंद हो जाती है। जिसे किसी भी दवाई द्वारा बढ़ाया या शुरू नही किया जा सकता । इसलिए इसे पेड़ पर ही पकने दिया जाता है फिर तोड़ा जाता है।
उदाहरण – अमरूद , नींबू, संतरा, अंगूर, जामुन, बेर, स्ट्राबेरी , अनार इत्यादि।
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