छत्तीसगढ़ ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA)
ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA) का अवधारणा
ग्राम स्वराज का आर्थिक दर्शन गांव के स्वावलंबन में है। महात्मा गांधी मानते थे कि “प्रत्येक गांव को एक स्वनिहित गणराज्य की तरह होना चाहिये।” प्रख्यात ब्रिटिश लेखक ई.एफ. शुमाकर ने कहा था “जब तक ग्रामीण जीवन का स्तर नहीं उठता, तब तक बड़े पैमाने में फैली बेरोजगारी और शहरों में पलायन जैसी बुराइयों का समाधान नहीं होगा।
विनोबा जी के शब्दों में कहे तो कृषि के साथ-साथ कृषि उद्योग को ग्राम की उत्पादन संस्कृति के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है। ताकि हर जिला और हर समुदाय, रोजगार के विभिन्न आयामों को अपने लोगों को उपलब्ध करा सके। आज जब बेरोजगारी बहुत ज्यादा है और शहरों की ओर पलायन नहीं रुक रहा है, ये बातें अत्यंत संदर्भिक लगती हैं। सदियों से गांव उत्पादन एवं नवाचार के केन्द्र भी रहें हैं।
यह उत्पादक व्यवस्था तभी मजबूत होती है जब, जिन-जिन चीजों का गांव में उपभोग किया जा सकता है उनमें से अधिकतर का उत्पादन गांव में ही हो। जो भी सेवाए, लोगों के रोजमर्रा के जीवन में आवश्यक होती है उन्हें भी गांव में उपलब्ध हो जाना चाहिये। इस दृष्टिकोण के पीछे एक सशक्त आर्थिक तर्क छिपा है। यदि ग्रामीणजन बड़े पैमाने पर अपने एवं आसपास के गांव में स्वनिर्मित उत्पादों का लेनदेन करते हैं तो समृद्धि घरों में बढ़ती है।
जब बाहरी दुनिया से धन के प्रवाह की दिशा जब गाँवों की ओर होती है तो उनकी आय (इनकम इफेक्ट) पर निश्चित ही एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत यदि बड़ी मात्रा में वस्तुओं, उत्पादों एवं आर्थिक लेन-देन बाहरी बाजार से गाँव के बाजारों की तरफ होता है, तो ग्रामीणजन की आय में वृद्धि नहीं होती, बल्कि कमी होती जाती है। यदि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणजनों की आय में वृद्धि हमारा उद्देश्य हो तो गांव के अंदर अधिक उत्पादन, विपणन या आर्थिक लेनदेन का होना मात्र ही एक सशक्त रणनीति है।
भौगोलिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो स्थानीय लेनदेन पर ज्यादातर निर्भरता स्थानीय लोगों के लिये आजीविका के प्रचुर अवसरों का सृजन भी करती है और अतिरिक्त उत्पादन को बाहरी बाजारों में लाकर स्थापित करती है। इससे बाहर और भीतर के बाजारों में एक संतुलन आता है। गांधी एवं कुमारप्पा की इसी अवधारणा से प्रेरित ग्रामीण औद्योगिक पार्कों” का निर्माण छत्तीसगढ़ में किया जा रहा है।
यह पार्क छत्तीसगढ़ शासन की प्रमुख योजना “नरुवा, गरुवा, घुरुवा, बाड़ी” के अंतर्गत निर्मित गौठान प्रक्रिया में गोधन न्याय योजना के बाद तीसरा घटक है। जहाँ स्थानीय एवं आधुनिक तकनीकों की सहायता से स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिये सामुदायिक उत्पादन केंद्र है। यहाँ सरकार के द्वारा उत्पादन की मूलभूत सुविधा, आधारभूत संरचना एवं मार्केटिंग सपोर्ट भी उपलब्ध कराया जायेगा।
रुरल इंडस्ट्रियल पार्कों की योजना एक स्वावलंबी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मॉडल निर्मित करने के लिये है, जहां ग्रामीण युवाओं के लिये रोजगार सृजन के पर्याप्त अवसर हों। साथ ही गांव अथवा गांव के समूह के लिये आवश्यक सेवाओं की पूर्ति के लिये गांव में उत्पादन व्यवस्था हो । आर्थिक विनिमय की पर्याप्त संभावना हो और केन्द्रीय एवं स्थानीय मार्केटिंग को संस्थागत रूप से विकसित किया जाये। जब गांव समृद्ध होते हैं, शहरों में नैसर्गिक समृद्धि बढ़ती ही है। यही छत्तीसगढ़ के ग्रामीण विकास का मूल मंत्र है।
ग्रामीण औद्योगिक पार्क के लिए ग्राम की आर्थिक सीमाएं या आभासी महाग्राम
गांवों की आर्थिक परिसीमाएं केवल गांवों में नहीं बल्कि आसपास के गांवों के समूह या क्लस्टर में होती है, इसे इम आभासी महाग्राम या वर्चुअल मेगा विलेज कह
सकते हैं। यह सहज रुप से ग्रामीण समाज में पायी जाती है, पर उसे संज्ञान में लेना जरूरी है। आमतौर पर यह आभासी सीमाएं लगभग तीन से पांच किलोमीटर वाली त्रिज्या की हुआ करती है, जिनमें दो प्रमुख बातें होती हैं।
पहला एक साझी प्राकृतिक संसाधन, दूसरा एक हाट बाजार। सामान्य तौर पर मुख्य प्राकृतिक संसाधन जैसे कि कोई नदी, पहाड़, वन या नाला उपस्थित होता है तथा एक पुराना हाट (स्थानीय बाजार) हुआ करता है। जिसमें लगभग 5-7 गांवों के उत्पादन बिकने आते थे। गांवों के ये समूह आमतौर पर एक जैसे जलवायु, प्राकृतिक संसाधन, भाषा/बोली तथा संस्कृति एवं पारस्परित संबंध साझा करते हैं।
गांव के ऐसे समूहों को एक Functional Community या जीवंत कार्यात्मक समुदाय कहा जा सकता है। यदि इस ग्राम समूह को महाग्राम मान लिया जाये तो इसके अंदर आने वाले ग्राम तथा ग्राम पंचायतें, महाग्राम संकुल के मोहल्ले अथवा कस्बे जैसे हो जाते हैं। इनके बीच जो एक हाट या बाजार हुआ करता है जहां उन आसपास के गांवों के सामान बिकने या बदलने आया करते थे। प्रायः महाग्रामों की सीमा उसकी आर्थिक, भौगोलिक सीमा को भी परिभाषित करती है।
आर्थिक लेनदेन मुख्यतः महाग्राम के सीमा के अंदर ही हुआ करता है। किसी भी उत्पादन के लिये महाग्राम एक बड़ा उपभोक्ता समूह भी देता है और उत्पादन का अवसर भी। किंतु 1960 के दशक के बाद और मुख्यतः 1990 के दशक में जब भारत ने अपने अर्थव्यवस्था में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का समावेश किया, तब उसके प्रभाव में महाग्रामों की सीमा नष्ट होने लगी और आसपास के शहरों से सीधी जुड़ने लगी।
जिसके परिणामस्वरूप बाहरी पूंजी और तकनीकी का हस्तक्षेप गांव के आर्थिक परिदृश्य को असमान रूप से बदलने लगा, जिसके फलस्वरूप गांव में मौजूद उद्योग तथा सेवा प्रदाता इसके चपेट में आकर खत्म होने लगे। गांवों के उत्पादनों की जगह हाट बाजारों में शहरी माल भरने लगे। ग्रामीण उत्पादन की मांग कम हो गयी और रोजगार के अवसर भी कम हो गये। अब स्वावलंबी महाग्राम ऐसे छोटे-छोटे गांव में बदलने लगे हैं, जिनका जुड़ाव सीधे शहर से हो गया है।
व्यवस्था से भी शहर केंद्रित है। इससे गांव से उत्पादों के स्थान पर श्रम का निर्यात सीधे शहरों की तरफ होने लगा। धीरे-धीरे गाँव शहरों की लेबर सप्लाई कालोनियों में बदलने लगे।
हालांकि मनरेगा से यह स्थिति थोड़ी रुकी है, पर इसमें आधुनिक तकनीकी का हस्तांतरण जरूरी हो गया है। स्वावलंबी महाग्राम की अवधारणा को पुनः स्थापित करने तथा कोरोना संक्रमण काल में घाटे में आ गये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये “रुरल इंडस्ट्रियल पार्क” की योजना बनाई गयी है। जहाँ गांव उत्पादन का एवं शहर ट्रेडिंग या व्यापार का वाणिज्य केन्द्र हो ।
ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA) का उद्देश्य
1. आभासी गांव की अवधारणा को पुनः स्थापित करना।
2. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना।
3. गांव के अंदर बड़े पैमाने पर आजीविका का सृजन करना।
ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA) परियोजना का औचित्य
कोरोना संक्रमण ने लाखों ग्रामीण बेरोजगार युवाओं को गरीबी के दलदल में धकेल कर अर्थव्यवस्था पर एक अभूतपूर्व चोट की है। इसके साथ ही गांव से दूर बड़े शहरों में काम कर रहे पलायन कर चुके ग्रामीण युवा, वापस गांव आने लगे हैं।
ऐसे समय में उनके पास अर्जित विभिन्न कौशलों को समायोजित करते हुये रोजगार सृजन करते हुये तथा संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हुये आर्थिक चक्र को पुनःस्थापित करने की आवश्यकता है। गौठानों में एक ग्रामीण औद्योगिक पार्क स्थापित कर आभासी ग्रामों में अवसरों को पुनर्जीवित करना उसी दिशा में एक कदम है। यह बड़े पैमाने में रोजगार सृजन करने तथा ग्रामीण संसाधनों के सदुपयोग करने की एक प्रभावी रणनीति है।
ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA) का मॉडल
प्रत्येक क्रियाशील गौठान में एक एकड़ जगह में “ग्रामीण औद्योगिक पार्क” स्थापित किये जाएंगे। जिनका प्रावधान पहले ही गौठान मॉडल की संकल्पना में ही किया जा चुका है। प्रारंभिक सर्वेक्षण दो उद्देश्यों को ध्यान में रख कर किया जा रहा हैः-
1. ऐसे वस्तु या सेवा जिनकी इकाई इन औद्योगिक पार्कों में स्थापित की जा सकती है उनका निर्धारण ग्राम की ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा व्यापार व्यवस्था को
ध्यान में रखकर किया जाना है।
2. सर्वेक्षण के माध्यम से बेराजगार युवाओं तथा काम करके अर्थोपार्जन के इच्छुक पुरुषों एवं महिलाओं को उनके कौशल के आधार पर सूचीबद्ध किया जाएगा
जिससे इन औद्योगिक पार्कों में उनके रुचि अनुरुप कार्य दिया जा सके।
सर्वेक्षण पूर्ण होने के बाद प्रत्येक वस्तु/सेवा के लिये उपयुक्त तकनीकी हस्तांतरण हेतु विशेषज्ञों, ग्रामीण कारीगरों या कंसलटेंट के माध्यम से व्यापार परिदृश्य विकसित किया जाएगा। इस पार्क में मौजूदा सरकारी रोजगार संबंधित योजनाओं तथा कार्यक्रमों का भी समावेश होगा।
इसी तारतम्य में विपणन रणनीति, विपणन विशेषज्ञों के माध्यम से अलग से की जायेगी। लाभार्थियों के प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास का कार्य समाजसेवी संस्थाओं तथा विशिष्ट एजेंसियों द्वारा किया
जायेगा।
पांच एकड़ की भूमि में गौठान विकास किया जा रहा है जहां न्यूनतम एक एकड़ में ग्रामीण औद्योगिक पार्क निर्मित किया जायेगा जिसका संक्षिप्त बुनियादी विवरण निम्नानुसार है:-
- 1वर्कशेड (न्यूनतम 30×20 फिट) -मल्टी युटिलिटी सेंटर
- इस वर्कशेड में 1/3 फिट की उंचाई वाला एक बड़ा मंच
- इनमें एक मोटर से चलित 4 शाफ्ट होंगे जिनमें उपयोग के आधार पर 4 यंत्र
(मशीन) जोड़े जा सकते हैं। - निर्मित वस्तुओं के लिये 1 भंडारण कक्ष
- 1 सम्मेलन केंद्र (Rural Conference Centre)
- 1 शिशुगृह (Creche)
- 3 प्रसाधन (पुरुष/महिला/दिव्यांग)
- विभिन्न आजीविका गुड़ी-जैसे कपड़ा गुड़ी, धातु गुड़ी, माटी गुड़ी, चमड़ा गुड़ी इत्यादि
ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA) अंतर्गत रोजगार गुड़ी
प्रत्येक रुरल इंडस्ट्रियल पार्क के अंदर तेलघानी गुड़ी, कपास गुड़ी, वस्त्र गुड़ी, लौहकर्म गुड़ी जैसे विषय से संबंधित सेक्टर होंगे, जहां पारंम्परिक जरुरतों एवं उत्पादन की प्रक्रियाओं के उपयुक्त तकनीकि हस्तांतरण (Technology Transfer) के माध्यम से उत्पादन की व्यवस्था होगी जिसकी जिम्मेदारी नवनिर्मित राज्यस्तरीय संरचनाएं तेलघानी बोर्ड, चर्म शिल्प बोर्ड, लौहकर्म बोर्ड जैसे बोर्डों के माध्यम से होगी।
ग्रामीण औद्योगिक पार्क – रीपा (RIPA) में C-MART
गौठानों एव ग्रामीण रुरल इंडस्ट्रियल पार्कों (RIPA) से उत्पादित प्रत्येक वस्तु के लिये राजधानी एवं समस्त जिलों को अलग से डिपार्टमेंटल स्टोर या मॉल खोला जायेगा। जहां खुदरे एवं थोक में वस्तुओं की बिक्री होगी, इसे C Mart का नाम दिया गया है। यह RIPA बोर्ड के सदस्यों के नियंत्रण में होगा एवं मांग आधारित उत्पादनों की आपूर्ति के लिये रुरल इंडस्ट्रियल पार्कों को प्रेरित करेगा।
गौठान के संबंध में आमतौर पर पूछे जाने वाले प्रश्न और उसका उत्तर (FAQs)
1. गौठान सरकारी है तो गांव वालों की भूमिका क्या है?
2. लावारिस जानवरों का क्या करें?
1. वे जानवर जो गांव में अनुपयोगी हो चुके, त्याग दिये गये, अपाहिज हो गए और अर्पित किए गये देव सांड जैसे पशुओं के समूह हैं। वे गांव में लावारिस घूमकर चरते हैं और तालाबों या वृक्षों की छांव में निवास करते हैं।
3. चारागाह का चारा पशुओं के लिये पर्याप्त नहीं है। क्या करें?
4. गांववालों को गौठान की कार्यप्रणाली की जानकारी नहीं है?
5. चारागाह में फैसिंग नहीं है इसलिये घास को बचाया जाना मुश्किल हो रहा है, क्या करें?
किंतु प्रारंभिक अवस्था में आवश्यकतानुसार डी.एम.एफ. या अन्य उपलब्ध मद / योजना में राशि उपलब्ध होने पर कांटेदार तार का प्रयोग किया जा सकता है।
6. चारागाह के चारे को कौन काटेगा तथा इसमें यह भी तय नहीं हो पा रहा है कि चारा काटने की मजदूरी मिलेगी या नहीं?
7. कुछ गांव में भौगोलिक स्थिति अनुसार घर दूर-दूर बसे हुए हैं। ऐसे में गौठान तक गायों को लाने की व्यवस्था कैसे करें?
1. बहुत सारी पंचायतों में आश्रित गांव दूर-दूर हो सकते हैं ऐसी स्थिति में मुख्य गौठान एवं चारागाह के अतिरिक्त उप-गौठान एवं उप- चारागाह बनाए जा सकते हैं। इनका प्रबंधन भी मुख्य गौठान समिति की नियमावली के अनुसार किया जाएगा।