धान का पैरा – फसल अवशेष प्रबंधन – आज की आवश्यकता EASY technique 2023

फसल अवशेष प्रबंधन (धान का पैरा)

फसल अवशिष्ट जलाने के दुष्प्रभाव-

1. फसल अवशिष्ट जलाने से निकलने वाले धुंये में मौजूद जहरीली गैसों से न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा है।

2. फसल अवशिष्ट जलाने से मृदा का तापमान बढ़ने के कारण मृदा की संरचना बिगड़ जाती है, तथा लाभदायक सूक्ष्मजीवियों की संख्या कम हो जाती है।

3. जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मृदा की उत्पादकता कम हो जाती है ।

4. फसल अवशिष्ट जलाने से केचुऐं, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाने से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता, फलस्वरुप मजबूरन महंगे तथा जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है ।

फसल अवशेष प्रबंधन
फसल अवशेष प्रबंधन

धान या अन्य फसल अवशिष्ट का प्रबंधन कैसे करें –

1. फसल कटाई के उपरांत खेत में पड़े हुये फसल अवशिष्ट के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई / पानी का छिड़काव करने के पश्चात ट्राइकोडर्मा का भुरकाव करने से फसल अवशिष्ट 15 से 20 दिन पश्चात कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जायेगें जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म तत्व प्राप्त होंगे ।

2. फसल अवशिष्ट को कम्पोस्ट में परिवर्तित होने की गति बढ़ाने के लिए सिंचाई उपरांत यूरिया का छिड़काव भी किया जा सकता है।

3. फसल अवशिष्ट के कम्पोस्ट में परिवर्तित होने से जीवांश की मात्रा मृदा में बढ़ जाती है जिससे मृदा की जलधारण क्षमता तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवों-सूक्ष्म तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है जो रासायनिक उर्वरकों के उपयोग क्षमता को बढ़ा देती है। ऐसा करने से कम रासायनिक उर्वरक डालकर अधिक पैदावार ली जा सकती है।

4. फसल कटाई उपरांत खेत में बचे हुए फसल अवशिष्ट को इकट्ठा कर गड्ढे में डालकर गोबर का छिड़काव करें तत्पश्चात ट्राइकोडर्मा या अन्य अपघटक डालकर कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है।

5. फसल कटाई उपरांत फसल अवशिष्ट खेत में ही पड़े रहने तथा इन्हें बिना जलाये भी उपयुक्त कृषि यंत्रों द्वारा बोनी की जा सकती है, ऊपर बिछे हुए अवशिष्ट नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण एवं बीज के सही अंकुरण के लिए मल्चिंग (पलवार) के रूप में कार्य करेंगे।

6. फसल अवशिष्ट का उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

7. धान के पैरे को यूरिया से उपचार कर पशुओं के सुपाच्य एवं पौष्टिक चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

8. फसल अवशिष्ट का उपयोग अन्य कार्यों जैसे कार्ड बोर्ड एवं खुरदुरे कागज निर्माण हेतु कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है।

9. ट्रेक्टर चलित कल्टीवेटर में जाली फंसाकर फसल अवशिष्ट को आसानी से एकत्र करने का सफल प्रयोग कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा जांजगीर जिले में किया जा चुका है।

READ MORE – Mushroom Spawn-मशरुम स्पॉन/बीज अपने घर में बनाए बहुत आसानी से- Best Jugad Technique (2023) और बैठे कमाएं लाखों रुपायें

फसल अवशेष प्रबंधन में बायोइनाक्यूलेंट किट का उपयोग-

1. बायोइनाक्यूलेंट किट में बहुसंख्यक अपघटनकारक जीवाणु होते है, जिनकी उपस्थिति से जैविक / कृषि अवशेष मात्र 40 से 45 दिवस में अपघटित होकर कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाता है.

2. इस प्रक्रिया में कचरे के ढेर को उठाकर इधर-उधर नहीं ले जाना पड़ता है, जिससे मानव श्रम एवं समय की बचत होती है.

3. इसमें कृषक अपनी आवश्यकतानुसार मात्रा में कम्पोस्ट फसल के समय पर तैयार कर लेता है.

4. इसमें सिर्फ उपयोग मे आने वाले बायोइनाक्यूलेंट किट की लागत ही लगती है.

5. इस किट से निर्मित कम्पोस्ट / खाद की गुणवत्ता बेहतर होती है एवं नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश की उपलब्ध मात्रा अधिक होती है.

6. इस किट से निर्मित कम्पोस्ट / खाद में सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है.

7. इसके निर्माण विधि अनुसार बार-बार नमी करने की आवश्यकता नहीं होती है.

8. इसमें जीवाणुओं की सक्रियता के कारण कचरे एवं खरपतवार आदि के बीज पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं, जिसके कारण आगामी फसलों में खरपतवार नियंत्रित रहती है.

9. पूर्णतः पकी खाद होने से दीमक आदि नाशी जीव का प्रकोप नही हो पाता है.

10. इस किट में कई प्रकार के लाभदायक जीवाणु एवं फफुंद होती है, जो कि फसलों के लिये लाभकारी होती है

Read More – Marigold Farming: Best Cultivation Guidelines A2Z

72 / 100