धान में पोटाश खाद डालना यूरिया DAP इतना है जरूरी – जानिए धान के फसल में क्या काम करता है और इसको नहीं डालने से क्या होता है – Best & Full Information 2023

धान की अधिक उपज और उत्तम गुणवत्ता के लिये पोटाश

पोटाश का महत्व 

भारत में धान की खेती लगभग साढ़े चार करोड हैक्टर भूमि पर होती है। विश्व के कुल धान क्षेत्रफल में भारत का योगदान 35% और उत्पादन में 22% है। हाँलाकि देश में धान की औसत उत्पादकता लगभग 35 क्विंटल प्रति हैक्टर है, जो अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम है जैसे कि 1 (66 क्विंटल/हैक्टर), इन्डोनेशिया (50 क्विंटल/हेक्टर) और वियतनाम (55 क्विंटल / हैक्टर) ।

धान में पोटाश
IPL का पोटाश की बोरी

पंजाब प्रांत की औसत धान की उत्पादकता 56 क्विंटल /हैक्टर, जबकि उत्तर प्रदेश में 35 क्विंटल, बिहार में 31 क्विंटल, ओडिशा में 22 क्विंटल और पश्चिम बंगाल में 40 क्विंटल ही है सिंचाई, उन्नत बीज, खरपतवार, कीट और रोगों के प्रबंध के साथ सही उर्वरक उपयोग का धान की अधिक उपज प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान है। संतुलित और समुचित उर्वरक उपयोग कर धान की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।

पोटाश खाद है धान का अधिक उपज का आधार

सर्वप्रथम भूमि की उर्वरकता और उत्पादकता अधिक उत्पादन का मुख्य आधार है। धान की अधिक उपज पाने के लिये किसान कड़ी मेहनत करता है और खेती के आधुनिक तरीके अपनाता है, लेकिन फसल की आवश्यकतानुसार पर्याप्त उर्वरक उपयोग करने को नजर अंदाज कर देता है। देश के विभिन्न स्थानों पर किये गये अनुसंधान प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकला है कि नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के साथ पोटाश देना भी फसल के लिये आवश्यक है।

संतुलित उर्वरक उपयोग सिंचित और असिंचित दोनों ही परिस्थितियों में समान रूप से महत्वपूर्ण है। हर फसल भूमि से ही सब पोषक तत्वों को प्राप्त करती है। धान की अधिक उत्पादन देने वाली में भूमि से अधिक मात्रा में आवश्यक पोषक तत्व लेती हैं।

औसतन तौर पर प्रत्येक क्विंटल धान उपज के लिये 2.5 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 0.9 कि.ग्रा. फास्फोरस और 3.3 कि.ग्रा. पोटाश तत्व भूमि से लिया जाता है।धान के पौधों की सही बढ़वार और विकास के लिये कई मुख्य, गौण और सूक्ष्म तत्वों की भी आवश्यकता होती है।

धान की फसल में पोटाश का काम 

पोटाश देने से धान में अधिक कल्ले बनते हैं जिसकी वजह से अधिक संख्या में बालियाँ आती हैं। बालियों और दानों के बनने और विकास के समय समुचित पोटाश पोषण, प्रकाश संश्लेशण से बने भोजन को बालियों और दानों में स्थानांतरित करने में मदद करता है जिसके परिणामस्वरूप अधिक संख्या में दाने पूरे भरे हुए और वजनी होते हैं।

अंतिम परिणाम होता है-अधिक उपज । नाइट्रोजन और फॉस्फोरस का सही लाभ लेने में पोटाश मदद करता है और अधिक नाइट्रोजन से होने वाले नुकसान से फसल को बचाता है। पोटाश से प्रोटीन और कार्बोहाड्रेट की मात्रा भी बढ़ती है जिसके कारण धान के दाने वजनी, चमकदार और मोटे रहते हैं। अतः पोटाश का मतलब है अधिक गुणवत्ता वाले दाने ।

पौधों में प्रकाश संश्लेशण आवश्यक है, खासकर ठण्डे और बादलों से घिरे समय में सूर्य के प्रकाश के उपयोग के लिये । पोटाश के प्रयोग से प्रकाश सश्लेशण की क्रिया को बरकार रखने में सहायता मिलती है।

पोटाश पौधों में बीमारियों, कीड़ों और सूखे, जलपलायन, लवणीय आदि को सहने की क्षमता बढाता है।

धान के पौधों में पोटाश कोशिकाओं के विस्तार को बढावा देता है, पोटाश देने से बड़ी कोशिकाओं का निर्माण का अर्थ है कोशिकाओं की दीवार के लिये अधिक पदार्थ बनना।

मोटी कोशिका दीवार फसल के ऊतकों को अधिक स्थिरता देगी और फसल को कीड़े- बीमारियों और आड़े गिरने के प्रति अधिक प्रतिरोधकता देने में सहायता करेगी।

पोटाश पौधों की जड़ों की बढ़वार और विकास, अधिक और लम्बी सूक्ष्म जड़ों को बढावा देता है जिसके कारण पौधे भूमि से ज्यादा पानी और पोषक तत्व ले सकते हैं। इसका यह भी अर्थ है कि भूमि में पौधे की पकड़ मजबूत होती है ।

असिंचित धान (सूखा) के लिए वरदान है पोटाश 

पोटाश पौधों द्वारा पानी के प्रभावी उपयोग को बढावा देता है जिसके कारण फसल में गर्मी या सर्दी को सहने की क्षमता बेहतर होती है।

बारानी या असिंचित धान में पोटाश बहुत ही उपयोगी है।

धान में पोटाश की कमी के लक्षण

धान में पोटाश की कमी के सामान्य लक्षण निम्नानुसार हैं :-

  1. पोटाश की कमी से पुरानी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है। पत्ती के सिरे और किनारे से हल्के पीले या नारंगी रंग के धब्बे या धारियां दिखाई देना आरम्भ होती हैं।
  2. पीली पत्तियों का बाद में ऊतक क्षय हो जाता है और पत्तियाँ झुलसी हुई दिखाई देती हैं। ऊतक भूरे रंग के हो जाते हैं और मर जाते हैं और पत्तियाँ सूख जाती हैं।
    कमी के लक्षण ऊपरी नई पत्तियों पर बढ़ते हैं जो छोटी और गहरे नीले रंग की रहती है।
  3. तने पतले और कमजोर रहते हैं और गिर सकते हैं।
  4. जड़े सही विकसित नहीं होती है और प्रायः सड़ जाती है।
  5. यदि पिछले दो वर्षों में खेत में जिंक नहीं डाला गया है तो रोपाई से पहले खेत में दस किलोग्राम जिंक सल्फेट (21% जिंक) प्रति एकड़ डालें।
    नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के असंतुलित उपयोग से भूमि की उर्वरकता का ह्यस हो सकता है और धीरे-धीरे भूमि के स्वास्थ और फसल की उपज में गिरावट आ सकती है और किसान की आमदनी कम हो सकती है।
  6. इसलिए नुकसान से बचने के लिए पोटाश की कमी के लक्षण दिखाई देने का इंतजार न करें, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। पहले ही उचित मात्रा में पोटाश का इस्तेमाल करें।

पोटाश को खेत में डालने की विधि 

सही समय और सही विधि से सही मात्रा में उर्वरक दिया जाना चाहिए। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा धान की रोपाई के समय देनी चाहिये।

यदि धान की खड़ी फसल में पोटाश की कमी के लक्षण दिखाई दें तो बीस किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ खेत में डालें। नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा को बराबर हिस्सों में बढ़वार की अवस्था और बालियां निकलने की अवस्था पर दें।

धान में अपर्याप्त मात्रा में पोटाश देने का अर्थ है:

  1. कम विकसित पौधे।
  2. जड़ों का कम विकास।
  3. कीड़े- बीमारियों, सूखे का अधिक प्रकोप
  4. फसल का पकने से पहले आड़ा गिरना और सड़ना, जिससे किसान को भारी नुकसान होता है।
  5. छोटे बेडोल और बदरंग दाने।
  6. कम उपज |
  7. कम लाभ।

धान की अधिक उपज लेने के प्रभावी बिन्दुः

  1. क्षेत्र की जलवायु और भूमि को ध्यान रखते हुए सही किस्म का चुनाव करें। उत्तम गुणवत्ता का प्रमाणित और उपचारित बीज काम में लें।
  2. सिफारिश किए गए उर्वरकों का सन्तुलित मात्रा में उपयोग करें।
  3. खरपतवार नियंत्रण करें।
  4. समय पर पर्याप्त सिंचाई दें।
  5. सिफारिश अनुसार पौध सरंक्षण तरीके काम में लें।
  6. पकाव के सही समय पर फसल काटें।

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